पिछले दिनों लोकसभा के चुनाव प्रचार के दौरान अपनी सभाओं में पीएम नरेंद्र मोदी अक्सर यह कहते थे, अपने दस साल के कार्यकाल के दौरान उन्हें एक विपक्ष की कमी खली, और “इससे मेरे दिल को दुख होता है.” लेकिन मोदी की यह पीड़ा कम हो गई होगी. जनता-जनार्दन ने उन्हें मजबूत विपक्ष दिया है. उनकी बात एकदम सही थी कि लोकसभा में 10 साल से विपक्ष के नेता की कमी है. लेकिन यह कोई नहीं बात नहीं है. नेता प्रतिपक्ष का पद 1980, 1989 और 2014 से लेकर 2024 तक खाली रहा है.
जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल के दौरान कोई मान्यता प्राप्त नेता विपक्ष नहीं था. हालांकि उन दिनों विपक्षी बेंचों पर बड़े कद के दिग्गज नेता थे, लेकिन उनका नेतृत्व करने वाले दल बहुत छोटे थे. 1952 के आम चुनाव में 489 सीटों के लिए चुनाव हुए थे. इनमें कांग्रेस ने 364 सीटें जीती थीं, जबकि दूसरा सबसे बड़ा दल सीपीआई थी जिसके 16 सांसद थे. इस बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सबसे ज्यादा 240 सीटें जीती हैं. जबकि कांग्रेस के खाते में 99 सीटें आई हैं. यह पिछले दस साल में कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. 18वीं लोकसभा में कांग्रेस के सांसदों का आंकड़ा कुल संख्या का 18 प्रतिशत है.
राहुल नेता विपक्ष बनने के इच्छुक नहीं
18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून से शुरू होकर 3 जुलाई को समाप्त होगा. 9 दिवसीय विशेष सत्र के दौरान लोकसभा स्पीकर का चुनाव किया जाएगा और नए सांसद शपथ लेंगे. इसी दौरान संसद को लीडर ऑफ अपोजिशन भी मिलेगा. ये पद पिछले 10 साल से खाली पड़ा है. आखिरी बार सुषमा स्वराज 2009 से 2014 तक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष थीं. लेकिन 2014 और 2019 के चुनावों में किसी भी विपक्षी दल के 54 सांसद नहीं जीते. नियमों के मुताबिक नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए लोकसभा की कुल संख्या का 10 फीसदी यानी 54 सांसद होना जरूरी है. इस बार कांग्रेस को ये पद दिया जाएगा. पहले ऐसी अटकलें थीं कि राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हो सकते हैं. लेकिन सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी ने यह पद संभालने के इच्छुक नहीं हैं.
क्या काम है नेता प्रतिपक्ष का
नेता प्रतिपक्ष का पद लोकतंत्र के लिए काफी अहम होता है। नेता प्रतिपक्ष को संसद में आधिकारिक मान्यता प्राप्त होती है। नेता प्रतिपक्ष संसद में विपक्ष का चेहरा होने के साथ-साथ कई अहम कमेटियों में वो शामिल होते हैं।
मिलती हैं ये सुविधाएं
- नेता प्रतिपक्ष का पद कैबिनेट मंत्री के बराबर होता है।
- केंद्रीय मंत्री के बराबर वेतन, भत्ता और अन्य सुविधा मिलती है।
- आवास और चालक समेत कार की सुविधा प्रदान की जाती है।
- नेता प्रतिपक्ष को कर्मचारियों का स्टाफ भी मिलता है।
नेता प्रतिपक्ष की शक्तियां
- नेता प्रतिपक्ष लोक लेखा, सार्वजनिक उपक्रम, अनुमान जैसी महत्वपूर्ण समितियों का सदस्य होता है।
- कई अन्य संयुक्त संसदीय समितियों का सदस्य भी होता है।
- नेता प्रतिपक्ष को सीबीआई, एनएचआरसी, केंद्रीय सतर्कता आयोग, केंद्रीय सूचना आयोग के प्रमुखों की नियुक्ति करने वाली चयन समितियों का सदस्य बनाया जाता है।
- नेता प्रतिपक्ष को संसद में सरकार की नीतियों की अलोचना करने की स्वतंत्रता होती है।
लोकसभा उपाध्यक्ष भी बनेंगे इस बार
डिप्टी स्पीकर का पद आमतौर पर विपक्षी खेमे को जाता है। हालांकि, आइएनडीआइए ने संसद के लिए अपनी रणनीति पर अभी तक कोई समन्वय बैठक नहीं की है, लेकिन एक विपक्षी नेता ने कहा कि वे इस बात के लिए दबाव बनाएंगे कि इस बार लोकसभा उपाध्यक्ष का पद खाली न रहे।
तृणमूल के एक नेता ने कहा कि भाजपा सरकार ने पिछले पांच वर्षों में कोई डिप्टी स्पीकर नहीं चुना। उम्मीद है कि इस बार डिप्टी स्पीकर का चुनाव करेंगे।
इस वजह से खाली रहा पद
बता दें कि लोकसभा में पिछले 10 साल से नेता प्रतिपक्ष का पद खाली है। 2014 में कांग्रेस को 44 सीटें और 2019 में 52 सीटें मिली थीं। भाजपा के बाद सबसे ज्यादा सीटें कांग्रेस को ही मिली थीं। फिर भी कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी नहीं मिली थी।
नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए किसी भी पार्टी के पास लोकसभा की कुल सीटों का 10 प्रतिशत सीटें होनी चाहिए। यानी 543 सीटों में से 54 सांसदों की जरूरत होती है।
17वीं लोकसभा में सिर्फ दो सीटों के चलते यह पद खाली रह गया। कांग्रेस ने इस बार अपने दम पर 99 सीटें हासिल की हैं। ऐसे में कांग्रेस सांसद को इस पर बार विपक्ष का नेता बनने का मौका मिलेगा।
नेता प्रतिपक्ष पद 1969 के कांग्रेस विभाजन के बाद अस्तित्व में आया. उस समय कांग्रेस (ओ) के राम सुभग सिंह ने इस पद के लिए दावा किया. संसद के 1977 के एक अधिनियम द्वारा नेता प्रतिपक्ष पद को वैधानिक दर्जा दिया गया. जिसमें कहा गया कि एक विपक्षी दल को अपने नेता यानी नेता प्रतिपक्ष पद के लिए विशेषाधिकार और वेतन का दावा करने के लिए सदन के कम से कम दसवें हिस्से पर अधिकार होना चाहिए. कांग्रेस के पास अब सदन का लगभग पांचवां हिस्सा है और उसने राहुल गांधी से यह भूमिका निभाने को कहा है. हालांकि उन्होंने अभी तक हां नहीं कहा है.
राम सुभग सिंह का जन्म सात जुलाई 1917 को बिहार के आरा जिले में हुआ था. उन्होंने 1942 में महात्मा गांधी के साथ भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया. वह जवाहर लाल नेहरू के करीबी सहयोगी थे और उन्होंने 1952 में बिहार राज्य के सासाराम निर्वाचन क्षेत्र से संसदीय चुनाव लड़ा और प्रथम लोकसभा में संसद सदस्य के रूप में चुने गए. 1957 में वह फिर से उसी निर्वाचन क्षेत्र से संसद के लिए चुने गए. 1962 में उन्होंने बिहार के बिक्रमगंज निर्वाचन क्षेत्र की संसदीय सीट जीती. 1967 में उन्होंने बक्सर निर्वाचन क्षेत्र के लिए आम चुनाव लड़ा और चौथी बार संसद के लिए चुने गए. वह कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे. लेकिन 1969 में कांग्रेस पार्टी नें विभाजन के बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (संगठन) के साथ चले गए. कांग्रेस (ओ) ने उन्हें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया.
राम सुभग सिंह लगातार 22 वर्षों से अधिक समय तक केंद्रीय विधानमंडल के सदस्य रहे. वह चार बार संसद सदस्य रहने के अलावा संसद में कांग्रेस पार्टी के सचिव भी रहे. उन्होंने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में केंद्रीय खाद्य और कृषि राज्य मंत्री, केंद्रीय सामाजिक सुरक्षा और कुटीर उद्योग मंत्री, केंद्रीय रेल राज्य मंत्री, केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री, केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री और केंद्रीय रेल मंत्री का पद संभाला. वह 1969-1970 में लोकसभा में भारत के पहले विपक्ष के नेता थे. उनका निधन 16 दिसंबर 1980 को हुआ था.