23 जून 2023 को 15 भाजपा विरोधी दलों ने नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए एकजुटता दिखाई थी। इसकी अगुवाई बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने की थी। उनकी अगुवाई में आज ही के दिन पटना में विपक्षी एकता की नींव पड़ी थी।
इस विपक्षी एकता बैठक का मकसद हर हाल में 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकना था। लेकिन, जिस नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए विपक्षियों को एकजुट किया था, उसी ने आज मोदी को तीसरी बार पीएम बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नीतीश ने न सिर्फ मोदी को पीएम बनाया, बल्कि विपक्ष को भी मजबूत किया है।
आज विपक्षी एकता के एक साल पूरे हो गए हैं। सबसे पहले इस बैठक की खास बातें और फिर वहां से राजनीतिक हवा के रुख बदलने के पूरे घटनाक्रम को जानिए…
आज से एक साल पहले 23 जून को पटना में पहली विपक्षी एकता की बैठक हुई थी। इस बैठक के सूत्रधार नीतीश कुमार विपक्षी एकजुटता को लेकर लगातार विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की। इसके बाद गैर बीजेपी राजनीतिक दलों के नेताओं का महाजुटान हुआ था, जिसमें 15 पार्टियों के नेता मौजूद थे। इस बैठक में मोदी को सत्ता से हटाने के लिए सियासी रणनीति पर चर्चा की।
6 राज्यों के मुख्यमंत्री और 5 पूर्व सीएम थे मौजूद
मुख्यमंत्री आवास पर हुए इस बैठक में JDU, RJD, AAP, DMK, TMC, CPI, CPM, CPI (ML), PDP, नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस, शिवसेना, सपा, JMM और NCP के प्रमुख शामिल हुए थे। इसमें 6 राज्यों के मुख्यमंत्री और 5 पूर्व मुख्यमंत्री भी मौजूद रहें। विपक्षी एकजुटता बैठक में कांग्रेस की तरफ से राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और सांसद राहुल गांधी शामिल हुए थे।
इसके अलावा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार, नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला, पीडीपी सुप्रीमो महबूबा मुफ्ती समेत लेफ्ट के नेता सीताराम येचुरी और डी राजा भी इस बैठक में शामिल हुए। वहीं, आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद को भी काफी समय बाद किसी राजनीतिक कार्यक्रम में एक्टिव देखा गया था।
नीतीश ने बीजेपी के सामने संयुक्त उम्मीदवार उतारने की कोशिश की थी
इस पहली बैठक में सीटों के बंटवारे का फॉर्मूला, हर सीट पर भाजपा के खिलाफ विपक्ष का एक प्रत्याशी, कॉमन मिनिमम प्रोग्राम और दिल्ली अध्यादेश जैसे मुद्दों पर बात हुई। इस मीटिंग में एक चीज क्लियर कर दिया गया था कि सभी गैर बीजेपी दल एक है। बैठक से नीतीश कुमार ने कोशिश की थी कि 2024 के चुनाव में बीजेपी के सामने विपक्ष की ओर से एक संयुक्त उम्मीदवार उतारा जाए।
दूसरी बैठक में तय हुआ I.N.D.I.A. गठबंधन का नाम
बेंगलुरु में दूसरी बैठक हुई। इसमें भाजपा के खिलाफ गठबंधन का नाम I.N.D.I.A. और फिर I.N.D.I. अलायंस रखा गया। नीतीश कुमार वहां कुछ नहीं बोले, पर वे इस नाम से नाखुश थे। उनकी नाराजगी का आलम यह था कि वहां से वो अकेले ही पटना लौट आए।
नीतीश को जितनी जल्दी इस गठबंधन को लीड करने की थी, उतनी बाकी पार्टियों के नेताओं में नहीं दिखी। नतीजा यह हुआ कि नीतीश कुमार खुद को ठगा महसूस करने लगे थे।
वहीं, तीसरी बैठक मुंबई में 31 अगस्त-1 सितंबर को हुई थी। नीतीश की उम्मीदों पर झटका लगा, क्योंकि तीसरी बैठक में उन्हें पीएम कैंडिडेट या को-ऑर्डिनेटर बनाने की बजाए भांति-भांति प्रकार की कमेटियां बना दी गई।
चौथी बैठक 19 दिसंबर को नई दिल्ली में हुई, जिसमें नीतीश ने इंडी से लगभग अपनी राह अलग करने का निर्णय ले लिया था।
5वीं बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को गठबंधन के राष्ट्रीय संयोजक पद की पेशकश की गई थी, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया था। फिर दो हफ्ते बाद ही बिहार में पॉलिटिकल क्राइसिस हुई और महागठबंधन की सरकार गिर गई।
नीतीश ने परिवारवाद पर बोला था हमला
पाला बदलने से पहले नीतीश ने इसके कई संकेत दिए थे। 23 जनवरी 2024 को नरेंद्र मोदी ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा की थी। उसी दिन कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती समारोह में नीतीश कुमार ने परिवारवाद पर हमला बोला।
उन्होंने कहा था कि आजकल तो लोग अपने परिवार को ही आगे बढ़ाते हैं, लेकिन कर्पूरी जी ने कभी नहीं बढ़ाया। जननायक से सीख कर हमने भी कभी अपने परिवार को आगे नहीं बढ़ाया। कौन क्या बोलता है, बोलता रहे। नीतीश की यह बात लालू और उनके परिवार को लेकर मानी जा रहे थी।
गणतंत्र दिवस पर नीतीश और तेजस्वी के बीच दिखी थी दूरी
फिर दो दिन बाद 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर जदयू और राजद गठबंधन के टूटने के आसार की खबर पहली बार तूल पकड़ी थी। पटना के गांधी मैदान में गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच दूरी दिखी थी।
इसमें नीतीश और तेजस्वी शामिल तो हुए, लेकिन डेढ़ घंटे साथ रहने के बावजूद भी दोनों बिना आपस में बातचीत किए निकल गए थे। बाद में राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर के टी पार्टी में बुलावे पर सीएम नीतीश कुमार पहुंचे, लेकिन डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव नहीं पहुंचे थे। यहीं से राजनीति में बड़े उलटफेर के संकेत मिले।
नीतीश ने पाला बदला, 9वीं बार बने सीएम
विपक्षी एकता बैठक की अगुवाई करने के 7 महीने बाद नीतीश कुमार ने पाला बदल लिया। 28 जनवरी 2024 को नीतीश कुमार ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा और उसी दिन शाम 5 बजे 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी और नेता प्रतिपक्ष रहे विजय सिन्हा को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है। शपथ ग्रहण के बाद सीएम नीतीश ने कहा कि अब कहीं जाने का कोई सवाल नहीं है।
नीतीश साथ आए, केंद्र में फिर से बनी मोदी की सरकार
4 जून 2024 को जब लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आया, तब फिर से मोदी की सरकार बनी। बिहार में नीतीश को साथ लाना बीजेपी का न केवल मास्टर स्ट्रोक था बल्कि गेमचेंजर भी रहा। अगर नीतीश कुमार की जदयू साथ न होती तो परिणाम और कुछ और हो सकते थे। लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद नरेंद्र मोदी के साथ नीतीश कुमार की भी स्थिति बदल गई। अब वे NDA और इंडी गठबंधन, दोनों के लिए जरूरी बन चुके थे।
5 साल में भले ही नीतीश कुमार नंबर्स के लिहाज से बिहार में कमजोर हुए थे, लेकिन दिल्ली की सियासत में उनका पावर कहीं ज्यादा बढ़ गया। कयास यही लगाए जा रहे थे कि नीतीश कुमार फिर से पाला बदल सकते हैं। पर इस बार नीतीश ने सभी को गलत साबित करते हुए नरेंद्र मोदी के साथ खड़े दिखे।
नीतीश ने विपक्ष को एक साथ लाकर मजबूत किया
विपक्ष के बिखरे कुनबे को एक मंच पर लाने का श्रेय भी नीतीश कुमार को ही जाता है। ये नीतीश कुमार ही थे जिन्होंने सबसे पहले कांग्रेस को गठबंधन के लिए तैयार किया था। नीतीश का संबंध देश की सभी क्षेत्रीय पार्टी के नेताओं से भी बेहतर है।
नीतीश के अलावा I.N.D.I.A गठबंधन में किसी नेता की इतनी पकड़ नहीं है कि वे सभी पार्टियों के साथ समन्वय स्थापित कर सकें। उनके इसी काम का नतीजा है कि आज मोदी सरकार सत्ता में तो जरूर आई, लेकिन जिस बहुमत और 400 पार का नारा दिया जा रहा था, वो आंकड़ा नहीं पार कर पाई।
विपक्ष के साथ लड़ने की वजह से बीजेपी को हुआ नुकसान
नीतीश ने मोदी को तो पीएम जरूर बनाया, लेकिन सभी विपक्ष को एक साथ लाकर खड़ा दिया। जिससे विपक्ष भी मजबूत हुई। कांग्रेस, आप, सपा जैसे दल एक साथ लड़े, इस वजह से बीजेपी को खूब नुकसान हुआ और साथ ही विपक्ष की सीटें भी बढ़ गई।
इस साल जहां NDA को 292, INDIA को 204, तृणमूल कांग्रेस को 29 और अन्य को 18 सीटें मिली। वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 303, कांग्रेस को 52 सीटें, तृणमूल कांग्रेस को 23, वाईएसआर कांग्रेस को 22 और अन्य के खाते में 143 सीटें गई थी।
बिहार में 39 से 30 सीट पर आ गई NDA
बिहार में लोकसभा चुनाव में जहां 2019 में NDA ने 40 लोकसभा सीटों में से 39 सीटें जीती थी। वहीं, इस बार 2024 के चुनाव में यह आंकड़ा घटकर 30 पर आ गया। उसे पिछली बार के मुकाबले 9 सीटों का नुकसान हुआ। वहीं, इंडी गठबंधन सिर्फ 1 सीट से बढ़कर 9 सीटों पर आ गया। बीजेपी को 12, जदयू को 12, लोजपा (आर) को 5, हम को 1 सीटें मिली।
वहीं, विपक्ष में कांग्रेस को 3, राजद को 4, भाकपा माले को 2 और निर्दलीय को 1 सीटें हाथ आई। 2019 में कुछ वोटों के अंतर से कांग्रेस ने एक सीट जीत ली थी।
नीतीश खुद बनना चाहते थे पीएम उम्मीदवार
पॉलिटिकल एक्सपर्ट ने कहा कि इस विपक्षी एकता की नींव रखने के बाद नीतीश कुमार जैसा चाह रहे थे, उस हिसाब से गठबंधन स्वरूप नहीं ले सका। उन्हें वो जिम्मेदारी भी नहीं मिली, जिसके लिए वह इच्छुक थे। उनको वहां से निराशा हाथ लगी, इसलिए उन्होंने अपने आप को इंडी गठबंधन से अलग कर लिया और भाजपा के साथ आ गए।
बीच में तो ऐसा भी लगा कि जिस गठबंधन की नीतीश ने नींव रखी थी, वो टूट जाएगा। लेकिन, लोकसभा चुनाव के रिजल्ट आए, उससे ये मालूम चलता है कि विपक्ष काफी ताकतवर हो चूका है। विपक्ष सत्ता में भले नहीं आ पाया, लेकिन एक बड़ी चुनौती मोदी सरकार के लिए जरूर पेश कर दी।