18वीं लोकसभा के लिए मंत्रिमंडल ने शपथ ले ली है. बीजेपी की नेतृत्व वाली NDA सरकार में विभागों का बंटवारा भी हो चुका है. अब बारी है नेता प्रतिपक्ष की, जो कि पिछले दस सालों से खाली पड़ा है.
साल 2014 और 2019 में संसद में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस को यह पद नहीं मिला. इतना ही नहीं संसद की वेबसाइट पर आज भी “लीडर ऑफ ओपोजीशन” के तौर पर सुषमा स्वराज का नाम दर्ज है. मगर मोदी सरकार के दो कार्यकाल के बाद इस बार कांग्रेस को यह पद मिलने वाला है. आखिर ऐसा क्यों है और इससे जुड़े नियम क्या हैं आज हम जानेंगे इस रिपोर्ट में.
नेता प्रतिपक्ष का इतिहास
संसद में नेता प्रतिपक्ष पद के लिए मावलंकर नियम का पालन करना होता है. जिसके तहत विपक्षी पार्टियों के पास लोकसभा की कुल संख्या का 10% यानी कि 54 सांसद होना अनिवार्य है.
पहले आप ये जानिए कि आखिर मावलंकर थे कौन? दरअसल मावलंकर का पूरा नाम गणेश वसुदैव मावलंकर है, उन्हें जी वी मावलंकर के नाम से भी जाना जाता है. वो देश के पहले लोकसभा स्पीकर थे.
साल 1952 में देश में पहला आम चुनाव हुआ. जिसमें कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। कांग्रेस को 364 सीटें हासिल हुई और उस वक्त के विपक्षी दलों में से एक CPI(M) ने 16 सीटों पर जीत दर्ज की. मावलंकर ने ही ये नियम दिया था कि नेता प्रतिपक्ष पद के लिए विपक्ष का लोकसभा में 10 प्रतिशत यानी कि 54 सांसद होना ज़रूरी है.
उनका कहना था कि यदि हम नेता प्रतिपक्ष के लिए किसी नियम का पालन नहीं करेंगे तो हर विपक्षी पार्टी नेता प्रतिपक्ष के पद पर अपनी दावेदारी ठोकेगा। यहां ये जानना भी ज़रूरी है कि मावलंकर का ये नियम संविधान में लिखित नहीं है. मगर इस नियम को लोकसभा, राज्यसभा और विधान सभा के साथ-साथ अन्य निकायों में भी लागू किया जाता है.
संविधान में नहीं है ऐसा नियम
संविधान के ‘लीडर ऑफ अपोजिशन इन पॉर्लियामेंट एक्ट 1977 में 10 प्रतिशत वाले नियम का जिक्र नहीं है. इस एक्ट के तहत राज्यसभा और लोकसभा में विपक्षी नेता का मतलब है सबसे बड़े दल का नेता जिसे लोकसभा स्पीकर ने मान्यता दी हो. इसके अलावा यदि दो विपक्षी पार्टियों को एक जैसा बहुमत मिलता है तो लोकसभा के अध्यक्ष स्थिति के आधार पर फैसला ले सकते हैं.
वहीं मावलंकर के 10% वाले नियम संसद में विपक्ष के नेताओं के वेतन और भत्ते अधिनियम, 1977 में शामिल है.
सुप्रीम कोर्ट ने मावलंकर नियम पर क्या कहा?
साल 2014 में कांग्रेस के पास सदन में 10% सांसद नहीं थे और भाजपा ने कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का पद देने से इनकार कर दिया था. तब कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. मगर सर्वोच्च न्यायालय ने 8 अगस्त 2014 को फैसला सुनाते हुए इस नियम को रद्द करने से इनकार कर दिया था.
कोर्ट ने कहा सदन के स्पीकर का फैसला न्यायिक समीक्षा के अंदर नहीं आता. तत्कालीन चीफ जस्टिस आर.एम. लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा जीवी मावलंकर का नियम सदन चलाने के लिए लागू की गई एक प्रक्रिया थी. साथ ही मुख्य न्यायधीश ने कहा कि हम यहां राजनीतिक मुद्दों के निपटारा के लिए नहीं बैठे हैं.
कब-कब रहा नेता प्रतिपक्ष का पद खाली
कई बार संसद में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली रहा है. साल 1952 से लेकर 1962 और 1977 से लेकर 1984 तक ये पद खाली रहे हैं.
- पहली लोकसभा चुनाव: 1951-52
- दूसरी लोकसभा चुनाव: 1957
- तीसरी लोकसभा चुनाव: 1962
- छठी लोकसभा चुनाव: 1977
- सातवीं लोकसभा चुनाव: 1980
- आठवीं लोकसभा चुनाव: 1984
साल 1984 में देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के निधन के बाद कांग्रेस को 415 सीटें मिली थी. वहीं भाजपा को 2 और TDP ने 30 सीटों पर जीत दर्ज किया था. मगर उस वक्त के लोकसभा स्पीकर बलराम जाखड़ ने तेलगू देशम पार्टी को यह पद नहीं दिया था. उन्होंने मावलंकर नियम का हवाल देते हुए कहा कि साल 1969 में मावलंकर ने विपक्ष की छोटी संख्या के कारण बिना विपक्ष पद के सदन चलाया था.
सदन में नेता प्रतिपक्ष की ताकत, वेतन और सुविधाएं
मजबूत लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष का होना बेहद ज़रूरी होता है. इसलिए उसे वैसी ही सुविधाएं दी जाती हैं जैसी कैबिनेट मंत्री को मिलती है. ‘लीडर ऑफ अपोजिशन इन पॉर्लियामेंट एक्ट 1977’ में इन सारी सुविधाओं का साफ-साफ जिक्र किया गया है. वह लोक लेखा समिति का चेयरमैन होता है साथ ही सरकार के खर्चों का हिसाब भी रखता है.
नेता प्रतिपक्ष सरकार के कई एजेंसियों और कमेटी का सदस्य भी होता है. जिसके तहत केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, मुख्य सूचना आयुक्त, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग शामिल है. साथ ही देश में ईडी, सीबीआई चीफ और इलेक्शन कमिश्नर की नियुक्ति में भी नेता प्रतिपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है.
राहुल गांधी बनेंगे सदन में नेता प्रतिपक्ष?
अभी तक मिली खबरों के अनुसार राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष का दावेदार बताया जा रहा है. इस बार के चुनाव नतीज़ों में कांग्रेस 99 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी है. ऐसे में नेता प्रतिपक्ष का पद कांग्रेस के खाते में हे. कांग्रेस कमेटी की बैठक में भी राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष चुन लिया गया है. मगर अब ये केवल राहुल पर निर्भर करता है कि क्या वो ये ज़िम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं?