भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अब नए पार्टी प्रमुख की खोज में जुट गई. इसके साथ ही वह पार्टी के राज्यों में प्रदर्शन का भी आकलन भी कर रही है. आपको बता दें कि जेपी नड्डा ने मंगलवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के रूप में पदभार ग्रहण कर लिया है. ऐसे में अब नए पार्टी प्रमुख को लेकर चिंतन शुरू हो गया है. इसके साथ ही पार्टी कुछ राज्यों में अपने कमजोर प्रदर्शन की भी समीक्षा कर रही है. यह समीक्षा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पार्टी के वैचारिक संरक्षक, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने हाल ही में सार्वजनिक रूप से भी चिंता व्यक्त की है. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में सोमवार को एक समारोह में कहा कि “दोनों पक्षों” की ओर से कड़वी बयानबाजी हुई. “जनता के सेवक” या लोक सेवकों के “अहंकार” पर आम जनता ने नाराजगी व्यक्त की है. उन्होंने मणिपुर में जारी हिंसा पर भी चिंता जताई.
दोनों संगठनों के बीच खराब समन्वय
मामले की जानकारी रखने वाले संघ के एक पदाधिकारी के अनुसार, आरएसएस नेतृत्व ने अपने मूल्यांकन में दोनों संगठनों के बीच खराब समन्वय, कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवारों के चयन पर आम सहमति की कमी और अपनी विचारधारा में निवेश किए गए कैडर पर दलबदलुओं को प्राथमिकता देने जैसे कारकों को सामने रखा है. इस कारण से भाजपा पूर्ण बहुमत पाने में विफल रही है. “ऐसी चिंता थी कि पिछले कुछ वर्षों में समन्वय (समन्वय) कमजोर हो गया है. इसके साथ आरएसएस का नेतृत्व जेपी नड्डा के एक पुराने बयान से खफा है. एक भाषण वे कह रहे हैं कि भाजपा अब इतनी शक्तिशाली हो चुकी है कि उसे अब संघ की जरूरत नहीं है.
समीक्षा के आधार पर अध्यक्ष को चुना जा सकता है
जेपी नड्डा का कार्यकाल जनवरी में ही समाप्त हो गया था. मगर लोकसभा चुनाव के कारण इसे बढ़ाया गया था. अब वे कैबिनेट मंत्री बन चुके हैं. ऐसे में एक पूर्णकालिक पार्टी अध्यक्ष की आवश्यकता है. इस बार पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा के आधार पर भाजपा अध्यक्ष को चुना जा सकता है. ऐसा कहा जा रहा है कि किसी महिला उम्मीदवार को पार्टी अध्यक्ष की कमान सौंपी जा सकती है. इसमें पार्टी के साथ आरएसएस का फीडबैक भी होगा.