वर्ष 2014 से हर पांच साल के बाद चुनावों और बीजेपी के संगठन में बदलाव का सिलसिला चलता रहा है. हर बार रिले रेस की बेटन देने की एक सिमेट्री रही है. पार्टी चुनाव जीतकर सत्ता में आती है. मौजूदा अध्यक्ष को काबिना मंत्री बनाया जाता है. फिर पार्टी अध्यक्ष पद की बेटन नए नेता को दे दी जाती है. अब तक ये अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरे ताकतवर नेता अमित शाह के करीबी और विश्वासपात्र रहे हैं. तो इस क्या होने वाला है.
वर्ष 2014 में जब बीजेपी ने चुनाव लड़ा तो पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह थे. चुनावों के बाद जब बीजेपी सत्ता में आई तो उसने राजनाथ को केंद्र में गृह मंत्री बनाया. तब अध्यक्ष पद की कमान अमित शाह को दे दी गई. शाह के जमाने में पार्टी का सांगठनिक ढांचा भी मजबूत हुआ और स्थिति भी. वर्ष 2019 के चुनावों में उनके अध्यक्ष रहते जब पार्टी को अभूतपूर्व जीत मिली तो वह भी केंद्र की नई सरकार में गृह मंत्री बन गए. इसके बाद अध्यक्ष पद की बेटन जेपी नड्डा को दे दी गई.
नड्डा ने बखूबी ये जिम्मेदारी संभाली. वह मोदी और अमित शाह दोनों के करीबी भी थे और भरोसेमंद भी. अब जबकि वह इस बार मंत्री पद की शपथ ले चुके हैं तो जाहिर है कि पार्टी का अध्यक्ष पद अब किसी नए नेता को दिया जाएगा. हालांकि इन चुनावों में पार्टी ने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया. तो ये देखना होगा कि ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में पार्टी की कमान किसके हाथों में सौंपी जाती है. जो भी होगा उसकी सबसे बड़ी खासियत ये जरूर होगी कि वो मोदी और शाह का खास और भरोसेमंद हो. बीजेपी में कई नामों की चर्चा भी होनी शुरू हो चुकी है. कई नाम मीडिया के जरिए बाहर भी आ रहे हैं.
किन नामों की चर्चा
अनुमान लगाया जा रहा है कि अनुराग ठाकुर को नए मंत्रिपरिषद से बाहर रखा जाना पार्टी संगठनात्मक ढांचे में उन्हें शामिल किए जाने की संभावना की ओर इशारा करता है. क्या वह पार्टी के शीर्ष पद को संभालेंगे, ये अभी बस कयासों के बीच एक कयास ही है. हालांकि दो और नामों की भी खूब चर्चा हो रही है और दोनों ही मोदी-शाह की भरोसेमंद कोटरी के अभिन्न सदस्य हैं और पार्टी के संगठन के कामकाज को लंबे समय से देख रहे हैं. ये हैं पार्टी के महासचिव विनोद तावड़े और यूपी के बाद कई राज्यों के चुनाव प्रभारी रह चुके सुनील बंसल.
जेपी नड्डा का पार्टी अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल इस साल जनवरी में ही खत्म हो चुका था लेकिन लोकसभा चुनावों के मद्देनजर उन्हें 06 महीने का विस्तार दिया गया. अब उनका कार्यकाल जून में समाप्त हो जाएगा.
क्या अनुराग ठाकुर संगठन में जाएंगे
चूंकि नड्डा हिमाचल से ही आते हैं तो उनके मंत्रिमंडल में आते ही इस राज्य से ताल्लुक रखने वाले बीजेपी के दूसरे ताकतवर नेता अनुराग ठाकुर के मंत्रिमंडल में प्रवेश पर रोक लग गई. अनुराग पिछले कार्यकाल में पहले राज्यमंत्री थे और फिर सूचना प्रसारण मंत्री के साथ खेल मंत्री रहे. वह मोदी के करीब रहे हैं, लिहाजा उन्हें मंत्रिमंडल के बाहर रखे जाने पर ये संभावना चाहिर की जा रही है कि वो पार्टी के संगठन में अहम स्थिति में जा सकते हैं. वह पांच बार लोकसभा के लिए चुने जा चुके हैं. लिहाजा कहना चाहिए कि उनके पास अपार संसदीय और सियासी अनुभव भी है.
वैसे तो स्मृति ईरानी भी इस बार मोदी सरकार में शामिल नहीं की गई हैं. हालांकि वह अमेठी से कांग्रेस उम्मीदवार किशोरी लाल शर्मा से 1.60 लाख से अधिक मतों से हार गईं. लेकिन वह ऐसी नेता हैं, जिन्हें हमेशा मोदी के करीब माना जाता है. जब भी विपक्षी पिछले पांच सालों में मोदी को पर कोई हमला करते थे तो सबसे पहले पलटवार और उन्हें निशाने पर लेने का काम अनुराग ठाकुर और स्मृति ईरानी ही करते रहे थे.
राजीव चंद्रशेखर को क्या मिलेगी केरल की जिम्मेदारी
तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस नेता शशि थरूर से करीबी मुकाबले में हारने वाले भाजपा नेता राजीव चंद्रशेखर भी हार के बाद मंत्री नहीं बन सके हैं. वह भी भाजपा संगठन में शामिल हो सकते हैं. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कहा भी कि वह भारत को आगे ले जाने के लिए भाजपा कार्यकर्ता के रूप में पहले की तरह ही अथक परिश्रम करते रहेंगे. माना जा रहा है कि उन्हें केरल में पार्टी संगठन की भूमिका मिल सकती है.
वो दो नाम जो ज्यादा मजबूत हैं
हालांकि ये चर्चाएं पहले से थीं कि नड्डा इस बार केंद्रीय मंत्री बन सकते हैं, लिहाजा उनकी जगह अध्यक्ष पद के तौर पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, धर्मेंद्र प्रधान और भूपेंद्र यादव का नाम लिया जा रहा था लेकिन ये सभी मोदी सरकार के तीसरे टर्म वाले मंत्रिमंडल में शामिल किए गए हैं. लिहाजा पार्टी के अंदर जो मंथन चल रहा है, उसमें इन नामों को अध्यक्ष के तौर पर नहीं देखा गया है.
अब आइए बात करते हैं पार्टी के महासचिव विनोद तावड़े और सुनील बंसल की, जिन्हें अध्यक्ष पद के लिए सबसे मजबूत दावेदार माना जा रहा है. तावड़े पहले मोदी सरकार में राज्यमंत्री थे. महाराष्ट्र से आते हैं. फिर उन्हें पार्टी में संगठन में लाया गया. वह बिहार के प्रभारी रह चुके हैं. कई और भूमिकाओं में काम करते रहे हैं. वहीं सुनील बंसल एक जमाने में यूपी में बीजेपी के ताकतवर प्रभारी थे.
तब कहा जाता था कि यूपी में टिकट बंटवारे से लेकर पर्दे के पीछे तमाम आपरेशनों में उनका हाथ होता था. उन्हें नरेंद्र मोदी और अमित शाह खासतौर पर यूपी में लेकर आए थे. इसके बाद उन्हें बंगाल और अन्य राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई. वह जहां संगठन के कामों में माहिर हैं बल्कि संगठन को बखूबी संभालने का अनुभव भी उन्हें है. हालांकि यूपी में उनका रहना पार्टी में ही कई दिग्गज नेताओं को चुभता भी रहा.
वैसे ये कहना चाहिए कि इसी महीने के आखिर तक बीजेपी अपने नए अध्यक्ष को चुन लेगी, इसमें आगामी चुनावों के साथ पार्टी को फिर नए तरीके से तैयार करने की जिम्मेदारी होगी. चूंकि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को उम्मीद के मुताबिक सीटें नहीं मिली हैं लिहाजा इस बार पार्टी संगठन में व्यापक बदलाव की उम्मीद की जा रही है.