बिहार बदल रहा है। कभी बिहार की राजनीति में अपराध की दुनिया से निकले बाहुबली नेताओं की तूती बोलती थी। यह वही दौर था, जब बिहार में लालू-राबड़ी का राज था। इन्हीं आपराधिक प्रवृत्ति के नेताओं के काले कारनामों को देखते हुए पटना हाईकोर्ट ने बिहार में जंगलराज की टिप्पणी की थी। 2005 से ऐसे बाहुबली नेताओं का राजनीति से वनवास शुरू हुआ था, जब नीतीश कुमार ने बिहार की बागडोर संभाली थी। अरसे बाद बाहुबलियों ने दूसरी चाल खोज निकाली। उनकी पत्नियों ने मैदान संभाला। पर, इस बार के लोकसभा चुनाव में बिहार की जनता ने बाहुबली नेताओं के मंसूबों पर पानी फेर दिया। हालांकि अपवाद स्वरूप कुछ कामयाब भी हो गए हैं। पूर्णिया से पप्पू यादव और शिवहर से आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद की जीत को अपवाद ही माना जाएगा। वैसे इन दोनों घरानों ने अब राह बदल ली है और उनकी आपराधिक छवि उनके कामों से धूल-धूसरित हो गई है। पप्पू ने निर्दलीय चुनाव लड़ कर जेडीयू के पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा और आरजेडी की बीमा भारती को शिकस्त दी तो शिवहर में आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद ने आरजेडी की रितु जयसवाल को पराजित किया। उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाई, उनमें तीन नाम उल्लेखनीय हैं। मुंगेर से चुनाव लड़ने के लिए आपराधिक छवि वाले अशोक महतो ने आनन-फानन अनीता देवी से ब्याह रचाया। आरजेडी ने जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए अनीता को अपना उम्मीदवार बनाया। लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वैशाली से बाहुबली विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला आरजेडी के टिकट पर लड़े, लेकिन लोगों ने उन्हें नकार दिया। सिवान से मरहूम बाहुबली सांसद शहाबुद्दीन की बीवी हिना शहाब ने तीन बार आरजेडी के टिकट पर लड़ कर हारने के बाद चौथी बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में किस्मत आजमाया, लेकिन मतदाताओं ने उन्हें भी नकार दिया।
वैशाली में मुन्ना शुक्ला मात खा गए
वैशाली लोकसभा सीट से आरजेडी ने कभी कुख्यात रहे बाहुबली विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला को इस बार अपना उम्मीदवार बनाया था। मुन्ना शुक्ला पूर्व में विधायक भी रह चुके हैं। जातीय समीकरण उनके पक्ष में मान कर आरजेडी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया था। दूसरी ओर एनडीए समर्थित एलजेपीआर वीणा देवी मैदान में थी। वैशाली की लड़ाई कांटे की मानी जा रही थी। पर, वीणा देवी ने उन्हें परास्त कर बड़ी जीत दर्ज कर ली। वीणा देवी और मुन्ना शुक्ला के बीच जीत-हार का अंतर 88,359 वोटों का रहा। वीणा देवी को 5,40,523 वोट मिले। इमरजेंसी के बाद 1977 में वैशाली लोकसभा सीट अस्तित्व में आई थी। पहली बार 1977 में यहां से दिग्विजय नारायण सिंह जनता पार्टी के टिकट पर सांसद निर्वाचित हुए थे। उसके बाद आरजेडी के टिकट पर लगातार पांच बार रघुवंश प्रसाद सिंह वैशाली से सांसद बने। कांग्रेस और लोजपा का भी यहां से दो-दो बार लोकसभा में प्रतिनिधित्व रहा है।
शहाबुद्दीन की बीवी की हार
सिवान से सांसद चुने जाते रहे आपराधिक पृष्ठभूमि के शहाबुद्दीन को सजा होने के बाद उनकी पत्नी लगातार सिवान से लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाती रही हैं। पहले तीन बार उन्होंने अपने पति की पार्टी आरजेडी से भाग्य आजमाया। उन्हें कामयाबी नहीं मिली। इस बार आरजेडी ने उनकी खोज खबर ही नहीं ली तो वे निर्दलीय प्रत्याशी बन कर मैदान में उतर गईं। आरजेडी ने अवध बिहारी चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया तो एनडीए ने सिवान की सीट जेडीयू को दे दी। जेडीयू ने विजय लक्ष्मी देवी को उम्मीदवार बनाया। सिवान की त्रिकोणीय लड़ाई में हिना शहाब दूसरे नंबर पर आकर ठहर गईं और जीत विजय लक्ष्मी को मिल गई। हालांकि हिना ने भी खासा वोट बटोरे। हिना शहाब को 2,93,651 वोट मिले, जबकि जीत हासिल करने वाली विजय लक्ष्मी देवी को 3,86,508 मत प्राप्त हुए।
मुंगेर में अशोक महतो की पत्नी हारी
सबसे दिलचस्प मुकाबला मुंगेर में रहा। लालू यादव ने इस बार लोकसभा चुनाव में 90 के दशक का फार्मूला अपनाया। जातीय समीकरण को ध्यान में रख कर उन्होंने टिकट बांटे। जातीय समीकरण में दबंग और आपराधिक छवि के लोगों को भी उम्मीदवार बनाने से उन्होंने परहेज नहीं किया। वैशाली के बाद मुंगेर में उन्होंने जेल से हाल ही छूटे दर्जनों हत्याओं के आरोपी अशोक महतो को चुनाव लड़ने का ऑफर दिया। अशोक महतो की पृष्टभूमि को देखते हुए लालू ने उन्हें बीच का रास्ता सुझाया। कहा कि वे शादी कर लें और अपनी पत्नी को मैदान में उतारें। तकरीबन 60 साल की उम्र में अशोक महतो ने अपने लायक कन्या ढूंढ ली। हड़बड़ी में अनीता से उसने ब्याह रचाया। आरजेडी ने अनीता को टिकट दे दिया। पर, परिणाम जब सामने आया तो सभी भौंचक रह गए। अनीता के खिलाफ चुनाव लड़ रहे जेडीयू प्रत्याशी राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने 5,50,140 वोट पाकर जीत दर्ज कर ली। बाहुबली अशोक महतो की पत्नी अनीता देवी को 4,60,276 वोट मिले। ललन सिंह का वोट शेयर 48.3 प्रतिशत रहा तो अनीता देवी का 41.2 प्रतिशत।