यह बात ठीक है कि बिहार में एनडीए 30 सीटें जीता और ‘इंडिया’ को सिर्फ 9 सीटें मिलीं। लेकिन इस चुनाव ने सबका, कमोबेश कुछ ने कुछ दरका दिया। कोई भी पार्टी या गठबंधन यह दावा नहीं कर सकता है कि उसके जनाधार या समीकरण के वोट साथ रहे, नहीं छितराए।
वोट की टूट-फूट की कारगर मरम्मत करके ही अगले साल होने वाला विधानसभा चुनाव जीता जा सकेगा। अपने वोट को मजूबती से सीमेंटेड करने में जो जितना कामयाब होगा, उसका परचम उतना ही लहराएगा।
लालू यादव इस चुनाव में कुशवाहा,भूमिहार और वैश्य को साधने में सफल रहे, लेकिन अपने माय समीकरण को पूरी तरह नहीं बचा पाए।
चुनाव में जात हावी
चुनाव में सबसे ज्यादा जात की चली। धर्म से भी ज्यादा। जात ही धर्म बन गई। इसे सबने निभाया। खुद से। मन से। लगभग सभी जात के लोगों ने अपनी जात के उम्मीदवारों को तवज्जो दी। ज्यादातर जगहों पर लोगों ने नेताओं, खासकर जातीय क्षत्रपों की बात नहीं मानी।
बात मानी जाती, तो पूर्णिया में राजद की बीमा भारती तीसरे नंबर पर नहीं रहतीं और औरंगाबाद से भाजपा के सुशील कुमार सिंह नहीं हारते। बीमा को यादवों ने वोट नहीं दिया, तो कुशवाहा जमात ने सुशील की बजाए अभय कुशवाहा को पसंद किया।
बीजेपी के लिए फायदेमंद रहे नीतीश
पिछले चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी एनडीए में नहीं थे। अबकी रहे। उपेंद्र हार गए। हालांकि, एनडीए के मौजूदा स्वरूप की आजमाइश कारगर रही। हां, उसे 9 सीटों का नुकसान हुआ। 5 भाजपा को। 4 जदयू को। लोजपा के सभी 5 उम्मीदवार जीते। भाजपा का नीतीश कुमार के साथ होना बहुत फायदेमंद रहा। नीतीश के 12 में से 7 उम्मीदवार एक लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीते। सबसे बेहतर परफॉर्मेंस लोजपा का रहा। उसके सभी 5 उम्मीदवार जीते।
लालू के MY समीकरण को डेंट
इस चुनाव में लालू के नए जातीय प्रयोग सफल हुए लेकिन ‘माय’ समीकरण भी दरका है। लालू प्रसाद ने इस चुनाव को, विधानसभा चुनाव को जीतने की प्रयोगशाला माना। कई प्रयोग किए। उनका विशेषकर ‘कुशवाहा’, ‘भूमिहार’ और ‘वैश्य’ प्रयोग कामयाब सा दिखा। इन जातियों का भी वोट राजद को और उसके चलते ‘इंडिया’ को मिला।
रितु जायसवाल (शिवहर), मुन्ना शुक्ला (वैशाली) हारे पर इनको मिले वोट और अभय कुशवाहा (औरंगाबाद) की जीत में यह कामयाबी दिखी। ये जातियां एनडीए की वोटर रही हैं।
अब एनडीए की बड़ी चुनौती हैं। इन सबको पूर्णता में फिर से साथ लाने के लिए एनडीए को बहुत मेहनत करनी होगी। ऐसी ही मेहनत राजद को अपने दरके ‘माय’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण को दुरुस्त करने में करनी होगी।
सीटों की लेन देन का हिसाब समझिए
इस लोकसभा चुनाव में 12 सांसद बेटिकट हुए। इसकी बड़ी वजह एनडीए के घटक दलों की अदला बदली रही। जेडीयू ने सीवान में अपना कैंडिडेट बदल दिया तो चिराग जुमई से हाजीपुर आए। आइए जानते हैं, सीट बदलने से कितना फायदा और कितना नुकसान हुआ।
लोकसभा 2024 के चुनाव में कई बड़े चेहरे चुनाव हार गए। मोदी कैबिनेट के मंत्री आरके सिंह आरा से चुनाव हार गए। वहीं लालू यादव की अपनी किडनी देने वाली बेटी रोहिणी आचार्य भी जीत नहीं सकीं। पवन सिंह चर्चा में रहे लेकिन जनता का दिल नहीं जीत पाए।