सातवें चरण का रण बेहद खास है। इस चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत उनके तीन मंत्रियों का इम्तिहान है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां खुद काशी से चुनाव मैदान में हैं, वहीं उनकी कैबिनेट के सहयोगी डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय चंदौली से, तो अनुप्रिया पटेल मिर्जापुर से भाग्य आजमा रही हैं।
राज्यमंत्री पंकज चौधरी महराजगंज से चुनाव मैदान में हैं। जानकारों का मानना है कि वाराणसी में तो चुनाव मार्जिन को लेकर हो रहा है, जबकि तीनों मंत्रियों के सामने कठिन चुनौती है। गोरखपुर से अभिनेता रवि किशन दूसरी बार मैदान में हैं।
मुख्यमंत्री का जिला होने के कारण इस सीट पर भी लोगों की निगाहें हैं। इस चरण में चर्चित सीट गाजीपुर में भी मतदान होगा। गाजीपुर को माफिया मुख्तार अंसारी का गढ़ माना जाता है। यहां से मुख्तार के बड़े भाई और मौजूदा सांसद अफजाल अंसारी सपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा की लहर के बावजूद 2019 में अफजाल बसपा के टिकट पर जीते थे। भाजपा ने स्थानीय पारसनाथ राय को टिकट दिया है।
कम मार्जिन से जीती सीटों पर भी चुनौती
पिछले चुनाव में बलिया सीट पर भाजपा से उतरे वीरेंद्र सिंह महज 15,519 वोटों से जीते थे। यहां सपा से उतरे सनातन पांडेय ने कड़ी टक्कर दी थी। वहीं चंदौली में डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय भी महज 13, 959 वोटों के अंतर से जीते थे।
एनडीए के पिछड़े नेताओं की अग्निपरीक्षा
अन्य चरणों की तरह अंतिम चरण में भी विकास के मुद्दे से अधिक जातीय समीकरणों के आधार पर चुनाव होने के आसार दिख रहे हैं। इसलिए भाजपा के सहयोगी पिछड़े चेहरे अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल, सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर और निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद की साख भी कसौटी पर है।
सबसे बड़ी चुनौती ओमप्रकाश राजभर के सामने है, क्योंकि उनके बेटे अरविंद राजभर 2019 में भाजपा की हारी हुई घोसी सीट से मैदान में हैं। सपा के राजीव राय और इसी सीट से सांसद रहे बसपा के बालकृष्ण चौहान राजभर को कड़ी टक्कर देते दिख रहे हैं। ऐसे में यह सीट जीतना एनडीए के लिए ‘नाक का सवाल’ बन गई है।
जातियों के चक्रव्यूह में फंसी हैं ये सीटें
पूर्वी यूपी में जातियों का चक्रव्यूह ऐसा है कि कोई भी पार्टी चाहकर भी अपने कोर वोटरों को नहीं सहेज सकती। दिक्कत यह है कि किसी भी पार्टी का कोर वोटर तभी तक उसका भक्त रहता है, जब तक उनकी जाति का कैंडिडेट उसकी पार्टी से है। अगर पार्टी का कैंडिडेट किसी और जाति से और मुकाबले में किसी दल से अपनी जाति का कैंडिडेट है तो कोर वोटर का भी मन बदल जाता है।
बलिया में भाजपा के नीरज शेखर हों या चंदौली में डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय, दोनों लोग जातियों के चक्रव्यूह में फंसे हैं। नीरज के सामने सपा के सनातन पांडेय तो डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय के सामने वीरेंद्र सिंह मुश्किलें पैदा कर रहे हैं।
जातीय समीकरण में मिठास की तलाश, देवरिया में प्रत्याशियों को झेलने पड़े मतदाताओं के कड़वे सवाल
गन्ने की खेती। चीनी मिलों की रौनक। किसानों के घर खुशहाली। ये सब देवरिया जिले और संसदीय क्षेत्र की कभी पहचान हुआ करती थीं। इस क्षेत्र को चीनी का कटोरा कहा जाता था। लोग आज भी गर्व से कहते हैं कि 1903 में एशिया की पहली चीनी मिल यहीं प्रतापपुर में लगी थी। पर, आज न तो यह चीनी का कटोरा रह गया और न ही वो मिठास रह गई। बहरहाल अब नाम के चीनी के कटोरे में जीत की मिठास की तलाश कर रहे प्रत्याशियों की मतदाताओं के कड़वे बोलों से धड़कनें बढ़ी हुई हैं।
प्रेम पाल के मन में छिपे गहरे भावों को समझने के लिए उनके जवाबों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करें तो यह साफ हो जाता है कि मतदाताओं में जातीय अस्मिता का सवाल कहीं ज्यादा गहरा है। बहरहाल भाजपा से इस बार पूर्व सांसद लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश मणि त्रिपाठी के पुत्र शशांक मणि मैदान में हैं, तो इंडी गठबंधन से पूर्व विधायक व कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ताल ठोक रहे हैं। बसपा ने पूर्व विधायक आनंद यादव के पुत्र संदेश को मौका दिया है।
देवरिया कस्बे में दाखिल होते ही हमारी मुलाकात अमित पांडेय से हुई। चुनावी माहौल के सवाल पर वह कहते हैं, नारेबाजी और रैलियों की भीड़ के इतर भी हमें देखने की जरूरत है। यहां मुख्य मुकाबला भाजपा व इंडी गठबंधन में है। अलबत्ता बसपा प्रत्याशी काडर वोटरों के साथ यादव बिरादरी में भी पैठ बनाने की कोशिश में हैं। पर, उनके सामने अपने पारंपरिक वोटरों को ही सहेजे रखने की बड़ी चुनौती है। इसमें चूक हुई तो भाजपा व इंडी गठबंधन की सेंधमारी नया समीकरण बना देगी।
देवरिया कस्बे के बाद हम कुशीनगर जिले के तमकुहीराज विधानसभा क्षेत्र के जोकवा पहुंचे। यहां मिलीं अमरावती चाय की दुकान चलाती हैं। सियासी चाय के जायके में भी उनकी काफी रुचि रहती है। चुनाव को लेकर सवाल होते ही वह बोल पड़ीं, कोई कुछ भी कहे, भाजपा से किसी का मुकाबला नहीं है। आप जान लीजिए ये प्रत्याशी, प्रत्याशी जो हो रहा है, ये सब झूठा शोर है। हम तो सिर्फ मोदी और योगी के नाम पर मतदान करेंगे। ठीक बगल में पान की दुकान लगाने वाले अंबरीश चौरसिया कहते हैं, सबकुछ तो ठीक है, लेकिन प्रत्याशी बोल्ड और बेबाक होना चाहिए। उनका इशारा इंडी गठबंधन प्रत्याशी की तरफ था।
फाजिलनगर बाजार निवासी अशरफ कहते हैं कि इंडी गठबंधन की लहर है। आवास मिला, पेंशन मिली और राशन भी ठीक है, लेकिन गठबंधन वाले इस बार कर्जमाफी की बात कह रहे हैं। उम्मीद है कि केसीसी का कर्ज माफ हो जाएगा। यहीं के प्रतीक कुशवाहा कहते हैं कि 2019 के चुनाव में सपा के साथ बसपा का गठबंधन हुआ था। परिणाम सबके सामने है। इस बार तो सपा ने कांग्रेस को साथ लिया है। सवाल यही है कि वोट कहां से आएगा। इंडी वाले वोट कहीं बाहर से लाएंगे क्या? जातीय समीकरणों को लेकर कयासबाजी भले हो रही है, लेकिन हकीकत सभी जानते हैं।
पांचों विधानसभा सीटों पर है भाजपा का कब्जा
देवरिया लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें-देवरिया सदर, रामपुर कारखाना, पथरदेवा, फाजिलनगर और तमकुहीराज हैं। तमकुहीराज और फाजिलनगर विधानसभा सीट कुशीनगर जिले की हैं।
- पांचों विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है। पथरदेवा से तो कद्दावर सूर्य प्रताप शाही विधायक हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में यहां से सपा, बसपा और कांग्रेस का खाता नहीं खुल सका था।
कद्दावरों की कर्मस्थली
- वयोवृद्ध ओमप्रकाश तिवारी कहते हैं कि देवरिया जिला मार्च 1946 में गोरखपुर से अलग वजूद में आया। 1993 में इससे अलग कुशीनगर जिले का गठन हुआ।
- देवरिया संसदीय सीट से राज मंगल पांडे, प्रकाश मणि त्रिपाठी और मोहन सिंह जैसे नेता चुनाव जीत चुके हैं। राज मंगल पांडे चंद्रशेखर सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे हैं।
- कांग्रेस को 1984 के बाद से यहां से जीत नहीं मिल सकी। यहां से दो बार सपा व एक बार बसपा भी जीत चुकी है।
चीनी मिलों का हाल
- अविभाजित देवरिया में कुल 14 चीनी मिलें थीं।
- 1993 में कुशीनगर जिले का गठन। यहां बस पांच मिलें ही बचीं।
- अभी बस एक चालू हालत में।
मुख्य मुद्दे
- बंद चीनी मिलों का संचालन
- कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना
- रोजगार सृजन का प्रयास
- बाढ़ का स्थायी निदान
- शहर में रिंगरोड
- जिला अस्पताल का निर्माण
समर के योद्धा और उनकी चुनौतियां
शशांक मणि, भाजपा
मजबूत राजनीतिक विरासत है। दादा एमएलसी थे। चाचा विधायक रहे। पिता लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश मणि त्रिपाठी दो बार सांसद चुने गए।
चुनौतियां : प्रचार में विधायकों की मजबूत उपस्थिति शशांक के साथ नहीं नजर आई। कद्दावरों की आपसी खींचतान हर विधानसभा क्षेत्र में नजर आई। कुछ जगहों पर तो भितरघात की भी आशंका।
अखिलेश प्रताप, कांग्रेस
पूर्व विधायक अखिलेश प्रताप सिंह पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। क्षेत्र में विकास कार्य के लिए खास पहचान।
चुनौतियां : रैलियों में भीड़ से इतर सपा के परंपरागत मतदाताओं के वोट की शिफ्टिंग। सपा के कुछ कद्दावर सीट कांग्रेस के पाले में जाने से नाराज हैं। उनकी सोच है कि कांग्रेस जीती तो सपा नेतृत्व का सफाया हो जाएगा।
संदेश यादव, बसपा
जिला पंचायत सदस्य संदेश के पिता आनंद यादव जिले की सलेमपुर विधानसभा सीट से 1993 में बसपा से विधायक रहे हैं। बाद में सपा में चले गए। सपा के बाद कांग्रेस में गए और अभी बसपा में।
चुनौतियां : बसपा के काडर वोटरों को सहेजने के साथ ही सजातीय मतदाताओं को अपने पाले में लाना। बसपा के बेस वोटरों तक सीधी पहुंच का अभाव।