लोकसभा के सातवें और अंतिम चरण में बिहार में 8 सीटों पर 1 जून को वोट डाले जाएंगे। आखिरी चरण में राजधानी की दो सीट पाटलिपुत्र, पटना साहिब के साथ-साथ सीएम के क्षेत्र नालंदा समेत काराकाट, बक्सर, आरा, जहानाबाद और सासाराम में मतदान होगा।
इस बार केंद्रीय मंत्री के साथ-साथ कई सीनियर लीडर्स की प्रतिष्ठा दांव पर है। नालंदा में जहां जेडीयू के कौशलेंद्र कुमार जीत का चौका लगाने की जुगत में हैं। वहीं काराकाट, जहानाबाद और बक्सर में त्रिकोणीय मुकाबले ने चुनावी दंगल को रोचक बना दिया है।
इन 8 सीटों पर हवा का रुख किस ओर है? किसकी स्थिति मजबूत है? कौन किस पर और क्यों भारी है? यह जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम ने 8 सीटों पर आम लोगों, पत्रकारों और पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स से बात की। इस बातचीत के जरिए इन सभी सीटों का माहौल समझने की कोशिश की है।
8 सीटों में 5 बक्सर, आरा, पटना साहिब, नालंदा और सासाराम में एनडीए का पलड़ा भारी लग रहा है। वहीं 3 सीट जहानाबाद, पाटलिपुत्र और काराकाट में कांटे की टक्कर नजर आ रही है।
जहानाबाद में इस बार 2019 की तरह ही जदयू के चंदेश्वर चंद्रवंशी और राजद के सुरेंद्र यादव के बीच मुकाबला है। लेकिन इस मुकाबले को बसपा के अरुण कुमार त्रिकोणीय बना रहे हैं। इसका खामियाजा एनडीए को हो सकता है।
काराकाट में पहले NDA की तरफ से उपेन्द्र कुशवाहा और इंडिया की तरफ से माले के राजा राम सिंह के बीच मुकाबला था। दो कुशवाहों के बीच लड़ाई थी। पर भोजपुरी फिल्म स्टार और राजपूत जाति से आनेवाले पवन सिंह के बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ने से लड़ाई अब इंटरेस्टिंग हो गई है।
युवा और राजपूत जाति के लोग पवन सिंह की तरफ आकर्षित हो गए हैं। इसका फायदा इंडिया गठबंधन को हो सकता है।
वहीं पाटिलपुत्र में बीजेपी के रामकृपाल जीत की हैट्रिक लगाने की कोशिश में है, लेकिन उनसे दो बार हार चुकी मीसा भारती उन्हें टफ फाइट दे रही हैं।
बक्सर में एनडीए कैंडिडेट मिथिलेश तिवारी और महागठबंधन से राजद के सुधाकर सिंह के बीच कड़ा मुकाबला है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे का टिकट काटकर भाजपा ने बिहार की इस सीट को हॉट बना दिया है। निर्दलीय कैंडिडेट आनंद मिश्रा और ददन पहलवान ने भी बक्सर में लड़ाई टफ कर दी है। अगर निर्दलीय कैंडिडेट के साथ वोट का समीकरण बदला तो परिणाम भी चौंकाने वाला आ सकता है। हालांकि अब तक मोदी-मंदिर कार्ड पर भाजपा मजबूत स्थिति में दिख रही है।
बक्सर लोकसभा सीट भाजपा और राजद की प्रतिष्ठा बन गई है। भाजपा केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे का टिकट काटकर मिथिलेश तिवारी को कैंडिडेट बनाया है, जबकि महागठबंधन ने राजद के सुधाकर सिंह खुद पूर्व मंत्री रहे हैं। वह राजद के प्रदेश अध्यक्ष पूर्व सांसद और मंत्री जगदानंद सिंह के बेटे हैं।
साल 2014 और 2019 में भाजपा से सांसद रहे अश्विनी चौबे का टिकट कटना राजद के लिए फायदेमंद रहा है,लेकिन दो निर्दलीय कैंडिडेट पूर्व आईपीएस आनंद मिश्रा और ददन पहलवान ने दोनों दलों का समीकरण बिगाड़ दिया है।
बक्सर को भाजपा ने ही बनाया दिलचस्प
सीनियर जर्नलिस्ट रवि शंकर श्रीवास्तव बक्सर में सीधी टक्कर एनडीए और महागठबंधन के बीच ही मानते हैं। वह कहते हैं, एनडीए कैंडिडेट मिथिलेश तिवारी राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे के साथ कुछ स्थानीय मुद्दों को टच कर रहे हैं। वह बक्सर को कशी की तरह विकसित करने की भी बात कर रहे हैं।
महागठबंधन के कैंडिडेट नौकरी और रोजगार की बात कर रहे हैं। भाजपा ने पूर्व मंत्री अश्विनी चौबे का टिकट काटकर लड़ाई दिलचस्प कर दिया है। यह बिहार की पहली ऐसी शॉकिंग कर देने वाली सीट है जहां भाजपा ने इतना कठोर फैसला लिया है। हालांकि भाजपा कैंडिडेट मिथिलेश तिवारी की पहले से ही यहां अच्छी पकड़ रही है।
यूथ में बढ़ा आनंद मिश्रा का क्रेज
पॉलिटिकल एक्सपर्ट अजीत यादव की माने तो बक्सर में आनंद मिश्रा का क्रेज है, वह यूथ का वोट अधिक संख्या में काट रहे हैं। अब 2019 के वोट में जीत का अंतर देखा जाए तो यह काफी अधिक रहा है, लेकिन उस समय की स्थिति अलग रही। चुनाव में पुलवामा हमला और राष्ट्रवाद का प्रभाव दिख रहा था। इस बार ऐसा कुछ नहीं है।
साल 2019 के चुनाव में ददन पहलवान नहीं थे, इस बार वह चुनाव में हैं। आनंद मिश्रा और ददन पहलवान इस बार सभी का गेम बिगाड़ रहे हैं। अगर निर्दलीय अधिक वोट काटने में सफल रहे तो निश्चित तौर पर भाजपा ही यहां से सीट क्लियर कर ले जाएगी।
बक्सर सीट पर टिकी हैं निगाहें
सीनियर जर्नलिस्ट रवि शंकर श्रीवास्तव कहते हैं, बक्सर यूपी बॉर्डर पर है इसलिए सबकी निगाहें भी इसी सीट पर हैं। यहां का चुनाव यूपी, बिहार और झारखंड को प्रभावित करता है। इस बार भी यहां मोदी फैक्टर काम कर रहा है। मोदी का नाम स्थानीय मुद्दों पर भारी पड़ रहा है। यूथ से लेकर हर वर्ग में मोदी फैक्टर का असर दिख रहा है।
आम लोगों में यह चर्चाएं भी हैं कि मोदी ने ही देश विदेश में भारत का नाम ऊंचा किया है। मोदी ने भारत को गर्व का एहसास कराया है। बक्सर को मिनी काशाी भी कहा जाता है। इसलिए भाजपा को इसका फायदा जरूर मिलेगा। इसीलिए मिथिलेश तिवारी ने काशी की तरह बक्सर काे विकसित करने की बात कहकर हिंदुत्व का कार्ड खेला है।
3 चुनाव से बढ़ा भाजपा का वोटिंग ग्राफ
अजीत यादव कहते हैं, अगर 2009 को छोड़ दें तो भाजपा यहां 1996 से लगातार जीतती आई है। साल 2009 में बक्सर लोकसभा सीट से आरजेडी के जगदानंद सिंह को जीत मिली थी, इस बार उनके बेटे सुधाकर सिंह जीत के लिए जोर लगा रहे हैं। बक्सर में लगातार तीन चुनावों में भाजपा का वोटिंग प्रतिशत लगभग 25 प्रतिशत बढ़ा है।
असम कैडर के पूर्व आईपीएस को भाजपा ने टिकट का आश्वासन दिया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह निर्दलीय ही भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचा रहे हैं। अश्विनी चौबे की अप्रत्यक्ष रूप से नाराजगी का भी खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा है।
बक्सर में सबसे अधिक ब्राह्मण वोटर्स हैं, वह भाजपा के कोर वोटर माने जाते हैं। लेकिन वोटों के ध्रुवीकरण और निर्दलीय कैंडिडेट के कारण जीत हार का अनुमान मुश्किल हो गया है। हालांकि मोदी का चेहरा और हिंदुत्व का मुद्दा भाजपा प्रत्याशी मिथिलेश तिवारी के लिए जीत का रास्ता आसान कर रहा है।
पाटलिपुत्र बिहार की तमाम लोकसभा की सीटों में हॉट सीट है। यहां से लालू प्रसाद की बड़ी बेटी मीसा भारती तीसरी बार चुनाव लड़ रही हैं। बीजेपी के रामकृपाल यादव उन्हें दो बार मात दे चुके हैं और फिर से बीजेपी ने रामकृपाल यादव को ही सामने किया है। इस बार यहां यादव एग्रेसिव रूप से मीसा भारती की तरफ दिख रहे हैं, लेकिन यादवों का एग्रेसिव होना बाकी जातियों के वोट बैंक को गड़बड़ा नहीं दे, इसका खतरा है।
मीसा भारती के साथ आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव, कांग्रेस और लेफ्ट की ताकत है। दूसरी तरफ रामकृपाल यादव के साथ बीजेपी का कोर वोट बैंक सवर्णों की बड़ी आबादी यहां है और साथ ही वैश्यों का बड़ा वोट बैंक है।
नरेन्द्र मोदी के नाम पर रामकृपाल यादव पार उतरने की तैयारी में हैं। रामकृपाल यादव की ओर से परिवारवाद का आरोप मीसा भारती पर लगाया गया, लेकिन इसके जवाब में मीसा ने कहा कि रामकृपाल यादव यह स्पष्ट करें कि उनका बेटा कभी राजनीति में नहीं आएगा। मीसा भारती के सामने रामकृपाल की हैट्रिक को रोकने की चुनौती है।
मीसा भारती, तेजस्वी यादव के कामकाज को, नौकरी देने के संकल्प को, दोगुना अनाज देने का वादा वोटर्स के आगे कर रही है। इस सीट पर बीजेपी के सबसे बड़े नेता नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी का चुनावी दौरा हो चुका है।
पाटलिपुत्र में यादवों के बाद भूमिहार, ब्राह्मण, कोइरी, कुर्मी और दलित मतदाता का प्रभाव काफी है। पाटलिपुत्र में दानापुर, मनेर, फुलवारी, मसौढ़ी, पालीगंज और बिक्रम विधान सभा आता है।