गंगा किनारे बसे इस जिले को लहुरीकाशी भी कहते हैं. लहुरीकाशी यानी कि छोटी काशी. वाराणसी से महज 78 किलोमीटर दूर इस जिले का अपना एक इतिहास है और केंद्र से लेकर राज्य की सियासत में अपनी एक पकड़ है. कभी कम्युनिस्टों का गढ़ माने जाने वाला गाजीपुर अब दो पार्टियों के बीच की लड़ाई का हिस्सा रह गया. गाजीपुर में कुल 7 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें फिलहाल समाजवादी पार्टी का कब्जा है. वहीं गाजीपुर लोकसभा सीट पर भी सपा-बसपा गठबंधन के तहत उम्मीदवार रहे बसपा नेता अफजाल अंसारी मौजूदा सांसद हैं. हालांकि इस बार के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के तहत सपा के कोटे से अफजाल अंसारी चुनाव लड़ रहे हैं.
अफजाल Vs पारस नाथ राय
अफजाल अंसारी 2004 में भी गाजीपुर लोकसभा सीट से सांसदी का चुनाव जीत चुके हैं. अंसारी ने अपने लगभग चार दशक के राजनीतिक करियर में कुल 5 बार विधानसभा और दो बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. 2024 का लोकसभा चुनाव गाजीपुर में काफी दिलचस्प हो गया है. एक तरफ जहां चुनावी लड़ाई के अनुभवी खिलाड़ी हैं तो वहीं दूसरी तरफ यानी की भारतीय जनता पार्टी की तरफ से पारस नाथ राय हैं. पारस नाथ राय जम्मू-कश्मीर के एलजी और गाजीपुर के पूर्व सांसद व पूर्व मंत्री मनोज सिन्हा के करीबी माने जाते हैं, जिनका यह पहला लोकसभा चुनाव है. वहीं बसपा से डॉ. उमेश कुमार चुनावी ताल ठोक रहे हैं.
भाजपा के सभी स्टार प्रचारकों ने गाजीपुर में किया प्रचार
बता दें कि गाजीपुर सीट पर उम्मीदवार को उतारने को लेकर ना केवल भाजपा ने देरी की. बल्कि सपा ने भी खूब इंतजार करवाया. कारण यह था कि सपा यह देखना चाहती थी कि भाजपा किसे अपना उम्मीदवार बना रही है. गाजीपुर के लोगों के बीच शुरुआती अटकलें यह भी थीं कि मनोज सिन्हा या फिर उनके बेटे अभिनव सिन्हा लड़ेंगे. लेकिन बीजेपी ने जब पारस नाथ राय के नाम का ऐलान किया तो सभी अटकलें खत्म हो गईं. पारस नाथ राय राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी नहीं हैं और यह बात पार्टी भी भली-भाति जानती है. यही वजह है कि पीएम मोदी, सीएम योगी, जेपी नड्डा, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तक के हेलिकॉप्टर गाजीपुर में लैंड हो चुके हैं और अब अमित शाह रोड शो करने वाले हैं.
अफजाल अंसारी का बैकअप प्लान
हालंकि गाजीपुर की लड़ाई केवल इस वजह से दिलचस्प नहीं हुई है. बल्कि अफजाली अंसारी के खिलाफ निचली अदालत के सजा के फैसले पर अब हाईकोर्ट से भी फैसला आने वाला है और यह कभी भी आ सकता है. ऐसे में संभावनाओं के बीच मौके की तलाश करते हुए अफजाल अंसारी ने अपनी बेटी नुसरत को भी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा दिया है. इस फैसले को एक बैकअप के तौर पर माना जा रहा है. स्थानीय लोगों का यह मानना है कि अगर हाईकोर्ट निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखती है तो अफजाल अंसारी की बेटी भले ही चुनाव लड़ रही हैं. लेकिन खतरा बढ़ सकता है. क्योंकि सपा-कांग्रेस के बुजुर्ग उम्मीदवारों को मुश्किलें पैदा हो सकती हैं वोटिंग डालते वक्त. क्योंकि अगर अफजाल अंसारी की उम्मीदवारी रद्द होती है तो ईवीएम मशीन में साइकिल का चुनाव चिन्ह नहीं होगा और उनकी बेटी का चुनाव चिन्ह छड़ी है, जिसको लेकर लोगों में कंफ्यूजन हो सकता है.
गाजीपुर में मुख्तार फैक्टर
बांदा जेल में रहने के दौरान माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की मौत को लेकर गाजीपुर की सियासत में बदलाव देखने को मिल सकता है. मुख्तार की मौत की सहानुभूति वोट के तौर पर अफजाल अंसारी को मिल सकती है. ऐसा नहीं है कि मुख्तार के समर्थकों में केवल मुस्लिम हैं. बल्कि सर्वण जातियों के साथ-साथ एससी जाति के लोग भी हैं. गाजीपुर, घोसी, बलिया और आजमगढ़ में भी मुख्तार फैक्टर माना जा रहा है.
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गाजीपुर का जातिगत समीकरण
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गाजीपुर लोकसभा सीट पर 2.70 लाख मुस्लिम मतदाता हैं, 4 लाख के आसपास दलित मतदाता हैं. 4.50 लाख के करीब यादव मतदाता हैं. वहीं 4 लाख के करीब ओबीसी मतदाता हैं. गाजीपुर वो लोकसभा सीट है, जहां जनता का मिजाज वक्त-वक्त पर बदलता रहा है. इस सीट पर कभी ऐसा नहीं हुआ कि कोई सांसद लगातार दो बार चुनाव जीता हो अगर अफजाल अंसारी इस बार चुनाव जीतते हैं तो ये गाजीपुर के लिए नया रिकॉर्ड होगा और इसका फैसला गाजीपुर की जनता करेगी.