विज्ञापन पर रोक के मामले में बीजेपी को सोमवार (27 मई, 2024) को बड़ा झटका लगा. सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल बीजेपी की याचिका सुनने से मना कर दिया और कलकत्ता हाईकोर्ट में बात रखने की सलाह दी.
कोर्ट ने कहा कि विज्ञापन पहली नजर में अपमाजनक लगते हैं. अभी जब हाईकोर्ट में सुनवाई लंबित है तो आप वहां अपनी बात रखिए. सुप्रीम कोर्ट से झटका लगने के बाद बीजेपी ने अपनी याचिका वापस ले ली है.
दरअसल, बीजेपी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) के खिलाफ अपने विज्ञापन पर कलकत्ता हाईकोर्ट की रोक को चुनौती दी थी.
बीजेपी ने क्या कहा है?
बीजेपी का कहना था कि कलकत्ता हाईकोर्ट ने बिना उसका पक्ष सुने एकतरफा आदेश दे दिया. राज्य सरकार के भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले यह विज्ञापन तथ्यों पर आधारित है. इसको देखते हुए बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
भाजपा का कहना है कि 20 मई को एकल न्यायाधीश ने अपना फैसला सुनाया। 22 मई को उच्च न्यायालय ने किसी भी हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवागनानम की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने ‘लक्ष्मण रेखा’ का पालन करने की टिप्पणी करते हुए कहा कि किसी भी राजनीतिक दल की ओर से कोई व्यक्तिगत हमला नहीं किया जाना चाहिए। खंडपीठ ने न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य के 20 मई के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। साथ ही कहा कि भाजपा एकल पीठ के समक्ष जा सकती है और अपने आदेश की समीक्षा या उसे वापस लेने का अनुरोध कर सकती है।
सुनवाई का मौका नहीं देने का लगाया आरोप
भाजपा ने यह दावा करते हुए अपील दायर की थी कि एकल पीठ ने उसे कोई सुनवाई का मौका दिए बगैर ही यह आदेश जारी कर दिया। भगवा पार्टी के वकील ने यह भी कहा कि संविधान में प्रावधान है कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान किसी भी विवाद को सुलझाने के लिए निर्वाचन आयोग उपयुक्त प्राधिकार है।
चार जून तक विज्ञापनों को प्रकाशित करने से रोका
हाईकोर्ट ने 20 मई को एक आदेश जारी कर भाजपा को चार जून तक आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले विज्ञापनों को प्रकाशित करने से रोक दिया। लोकसभा चुनाव प्रक्रिया चार जून को समाप्त होगी। अदालत ने आदेश में भाजपा को उन विज्ञापनों को प्रकाशित करने से भी रोक दिया था, जिनका उल्लेख तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने अपनी याचिका में किया था। टीएमसी ने विज्ञापन में पार्टी और कार्यकर्ताओं के खिलाफ असत्यापित आरोप लगाए जाने का दावा किया था।
अदालत ने कहा था कि याचिकाकर्ता टीएमसी द्वारा संलग्न समाचार पत्रों के विज्ञापनों को देखने से पता चलता है कि ये एमसीसी का उल्लंघन हैं। अदालत ने शिकायतों का तुरंत समाधान नहीं करने के लिए निर्वाचन आयोग के प्रति भी अप्रसन्नता जताई थी। टीएमसी की ओर से पेश वकील ने दलील दी थी कि भाजपा कुछ समाचार पत्रों में पार्टी को निशाना बनाकर विज्ञापन प्रकाशित करवा रही है जिसमें एमसीसी और निर्वाचन आयोग द्वारा जारी दिशानिर्देश का उल्लंघन हुआ है।