लोकसभा चुनाव के छठे चरण में बिहार की आठ सीटों वाल्मीकि नगर, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर, वैशाली, गोपालगंज, सीवान और महाराजगंज पर वोटिंग हो रही है। वाल्मीकि नगर की कुछ विधानसभा में वोटिंग 4 बजे तक होगी। वहीं इसके अलावा सभी सीटों पर शाम 6 बजे तक वोटिंग होगी। सुबह 9 बजे तक 9.66% मतदान हुआ है। जिनमें सबसे ज्यादा वैशाली में11.95% वोटिंग हुई है।
बिहार में सुबह 9 बजे तक 9.66% वोटिंग
पश्चिम चंपारण: 9.35 %
पूर्वी चंपारण: 8.95%
सीवान:10.54%
महाराजगंज: 9.06 %
गोपालगंज: 9.49 %
वैशाली:11.95%
शिवहर :9.25 %
वाल्मीकी नगर : 8.55 %
मोतिहारी, शिवहर, वाल्मीकि नगर से ईवीएम खराब होने की शिकायत आई। वहीं सीवान से निर्दलीय चुनाव लड़ रहीं हिना शहाब ने सुबह-सुबह वोट डालने पहुंचीं। उन्होंने कहा जनता ने साथ दिया है, आगे भी देगी।
छठे चरण में कुल 1 करोड़ 49 लाख 32 हजार 165 वोटर्स मतदान में हिस्सा ले रहे हैं। जिनमें से 78 लाख 23 हजार 793 पुरुष और 71 लाख 7 हजार 944 महिला वोटर हैं। थर्ड जेंडर की आबादी 428 है।इस बार कई दिग्गजों की किस्मत का फैसला होगा। जिसमें बाहुबली की पत्नी लवली आनंद, बाहुबली मुन्ना शुक्ला, बीजेपी के सीनियर लीडर राधामोहन सिंह, संजय जायसवाल जैसे नाम शामिल हैं।
इन 8 सीटों पर हवा का रुख किस ओर है? किसकी स्थिति मजबूत है? कौन किस पर और क्यों भारी है? यह जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम ने 8 सीटों पर आम लोगों, पत्रकारों और पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स से बात की। इस बातचीत के जरिए इन सभी सीटों का माहौल समझने की कोशिश की है।
8 सीटों में 5 पूर्वी चंपारण, वैशाली, महाराजगंज, वाल्मीकि नगर और गोपालगंज में एनडीए का पलड़ा भारी लग रहा है। वहीं 3 सीट शिवहर, सीवान और पश्चिम पंचारण में कांटे की टक्कर नजर आ रही है।
शिवहर में माहौल तो लवली आनंद की तरफ है, लेकिन वैश्य वोटर एकजुट हुए तो रितु जायसवाल भी बाजी मार सकती हैं।
बात सीवान की करें तो यहां त्रिकोणीय मुकाबला है। हिना शहाब के निर्दलीय लड़ने से एनडीए-इंडी गठबंधन का समीकरण बिगड़ रहा है। एक्सपर्ट की मानें तो हिना शहाब और एनडीए में टफ फाइट है।
पश्चिमी पंचारण में संजय जायसवाल को लेकर एंटी इनकंबेंसी है, जिसका फायदा कांग्रेस के मदन मोहन तिवारी को हो सकता है।
1. महाराजगंज में भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर
महाराजगंज लोकसभा सीट पर एनडीए के भाजपा कैंडिडेट जनार्दन सिंह सिग्रीवाल और महागठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी के बीच सीधी टक्कर है। एनडीए जहां जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी में है, वहीं महागठबंधन 11 साल बाद जीत के लिए प्रयास कर रही है।
दोनों कैंडिडेट्स के लिए अलग-अलग चुनौती है। भाजपा कैंडिडेट एंटी-इनकंबेंसी के शिकार हो रहे हैं, वहीं कांग्रेस के कैंडिडेट के बाहरी होने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
हालांकि महाराजगंज में मोदी की सभा ने भाजपा को जीत की हैट्रिक लगाने का रास्ता कुछ हद तक आसान कर दिया है।
कांग्रेस ने बिगाड़ा एनडीए का खेल
सीनियर जर्नलिस्ट प्रताप शेखर सिंह मानते हैं कि जनार्दन सिंह सिग्रीवाल और कांग्रेस के आकाश सिंह के बीच कड़ा मुकाबला है। सिग्रीवाल जीत गए तो यह उनकी जीत की हैट्रिक होगी। आकाश को विजय श्री मिलती है तो महागठबंधन की 11 साल बाद यहां वापसी होगी।
चुनाव का पूरा गणित और जातीय समीकरण महागठबंधन से कांग्रेस के आने से बिगड़ गया है। इस कारण से नई जातीय गोलबंदी दिख रही है। इसी वजह से एनडीए की जीत की राह मुश्किल हो गई है।
एनडीए को अपने कोर वोट में सेंधमारी का डर सता रहा है। हालांकि महागठबंधन के कैंडिडेट को कोई खास नुकसान होता नहीं दिख रहा है।
वोटरों की चुप्पी दोनों कैंडिडेट्स की धड़कन बढ़ाने वाली है। कैंडिडेट्स अपने कोर वोटर्स को साधने के लिए हर तरह से प्रयास कर रहे हैं।
विकास के मुद्दे पर घिर रहे सांसद
महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र में इस बार मोदी के चेहरे के साथ ही विकास पर बात हो रही है। जर्नलिस्ट मनीष कुमार कहते हैं, इस बार वोटर्स का अलग-अलग मिजाज भ्रमित कर रहा है। पिछली बार की तरह हवा नहीं दिख रही है। इस बार मोदी के चेहरे के साथ विकास पर भी बात हो रही है। इस बार वोटरों में अजीब नेचर देखने को मिल रहा है।
इसका बड़ा कारण निर्वतमान सांसद को दो बार मौका मिलने के बाद भी विकास के काम पर जोर नहीं होना माना जा रहा है। यहां पलायन, सिंचाई और खेती किसानी बड़ी समस्या है। रोजगार के लिए युवा बाहर जा रहे हैं, वहीं सिंचाई के भी पर्याप्त साधन नहीं हैं। बारिश के भरोसे खेती की चुनौती है। इस दिशा में भी कोई काम नहीं हो पाया है।
महराजगंज में जातीय समीकरण जानिए
एक्सपर्ट मानते हैं, आरएसएस से जुड़े जनार्दन सिंह सिग्रीवाल ने पहला विधानसभा चुनाव 2000 में जीता था। इसके बाद 2014 और 2019 में महाराजगंज से सांसद चुने गए। इस बार उनकी नजर हैट्रिक पर है। बात आकाश की करें तो वह बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश सिंह के बेटे हैं।
आकाश 2019 में वह आरएलएसपी के टिकट पर पूर्वी चंपारण से चुनाव मैदान में उतरे थे, लेकिन भाजपा के राधामोहन सिंह ने उन्हें पटखनी दे दी थी। सीवान और सारण जिले की 6 विधानसभा सीटें महाराजगंज में हैं। इनमें दो सीवान जिले में और चार सारण के में हैं।
गोरेयाकोठी और तरैया विधानसभा सीट पर बीजेपी, एकमा एवं बनियापुर पर आरजेडी, महाराजगंज पर कांग्रेस और मांझी पर सीपीएम का कब्जा है।
एक्सपर्ट मानते हैं कि इस बार नए जातीय समीकरण से ही चुनाव टफ हो गया है। अगर कांग्रेस ने जातीय समीकरण के आधार पर कैंडिडेट नहीं दिया होता ताे एनडीए के लिए जीत काफी आसान हो जाती।
जातीय समीकरण ने कांग्रेस को टक्कर में लाया
चुनावी एक्सपर्ट बताते हैं, इस बार महागठबंधन से कांग्रेस के आकाश कुमार सिंह चुनाव मैदान में हैं, जबकि निवर्तमान सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल एनडीए से भाजपा कैंडिडेट हैं। जहां तक जातीय समीकरण की बात है तो यहां फॉरवर्ड क्लास दोनों कैंडिडेट्स के खेमे में बंटा हुआ है।
आकाश टक्कर तो दे रहे हैं, इसमें कहीं से कोई दो राय नहीं है। इसके बावजूद मोदी फैक्टर और जातीय समीकरण के आधार पर उम्मीद यही है कि सिग्रीवाल चुनाव फाइट कर जाएंगे। हालांकि इस बार हार-जीत के वोटों का अंतर काफी कम होगा। आरजेडी से टिकट की दावेदारी कर रहे प्रभुनाथ सिंह के बेटे का नाराज होकर जेडीयू में शामिल होना भी कहीं न कहीं से एनडीए को मजबूत कर रहा है।
मोदी के चहरे पर ही 10 साल सिग्रीवाल को मिला है। मोदी अपना चेहरा याद दिलाने के लिए ही महाराजगंज आए और सिग्रीवाल के लिए वोट मांगा। महागठबंधन के पास कोई ऐसा बड़ा चेहरा नहीं है, यह सीट कांग्रेस के हिस्से में है। यहां से प्रत्याशी कांग्रेस के बिहार अध्यक्ष के बेटे हैं। ऐसे में वही बड़ा फेस है। कैंडिडेट युवा है, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के बेटे हैं इसका लाभ मिल रहा है जिससे वह फाइट कर रहे हैं।
2. गोपालगंज में विपक्ष के कमजोर उम्मीदवार के चलते जदयू को फायदा
गोपालगंज लोकसभा एक सुरक्षित सीट है। 6 विधानसभा वाले इस क्षेत्र में करीब 22 लाख की आबादी रहती है। 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से जदयू ने डॉ. आलोक कुमार सुमन को अपना उम्मीदवार बनाया था। इन्हें 5 लाख 68 हजार 150 वोट देकर जनता ने अपना सांसद बनाया था।
जनता को उम्मीदें थीं कि वो इस पूरे क्षेत्र का विकास करेंगे। मगर, ऐसा हुआ नहीं। गोपालगंज की जनता अपने सांसद से नाराज दिखती है। आरोप है कि वो क्षेत्र में एक्टिव ही नहीं रहे। बाढ़ की समस्या से निजात दिलाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
दिल्ली समेत दूसरे शहर जाने के लिए सीधी ट्रेनों की सुविधा दिलाने में असफल रहे। मेडिकल कॉलेज बनवाने के लिए आवाज नहीं उठाई। जिले में शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करवाने में भी कोई रोल नहीं निभाया। एक बार सबेया एयरपोर्ट को चालू कराने के लिए आवाज उठाकर चुप हो गए।
लोकसभा क्षेत्र में विकास के कई मुद्दे हैं, जिन पर जनता को लगता है कि सांसद को काम करना चाहिए था। मगर, उन्होंने काम किया नहीं। बावजूद इसके जदयू ने 2024 के इस चुनाव में भी डॉ. आलोक कुमार सुमन को ही लोकसभा का टिकट दे दिया।
वो दूसरी बार सांसद बनने के लिए चुनावी मैदान में उतरे हैं। इस बार इनका मुकाबला इंडिया गठबंधन में शामिल वीआईपी की टिकट पर पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार प्रेमनाथ चंचल उर्फ चंचल पासवान से है।
क्षेत्र के लोग और एक्सपर्ट स्पष्ट तौर पर कह रहे हैं कि विपक्ष ने गोपालगंज के मैदान में एक कमजोर उम्मीदवार को उतारा है। इन्हें आम लोग सही तरीके से जानते भी नहीं है। अब इसका फायदा सीधे तौर पर जदयू के उम्मीदवार को मिल सकता है। हालांकि, विकास के स्थानीय मुद्दे यहां भी गायब हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम का फैक्टर भी यहां काम कर रहा है। राम मंदिर और हिंदुत्व गोपालगंज में मुद्दा नहीं बन पाया है। यहां हवा का रुख जदयू उम्मीदवार की ओर है।
विपक्ष तगड़ा उम्मीदवार देती तो उनकी हार होती
सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि गोपालगंज को विपक्ष की ओर से उम्मीदवार सही नहीं मिला। इस कारण जदयू के उम्मीदवार का पलड़ा भारी है। हालांकि, पूरे 5 साल सांसद ने यहां काम नहीं किया। क्षेत्र की जनता के साथ भी उनका कोई मेलजोल नहीं रहा। अगर विपक्ष में तगड़ा उम्मीदवार होता तो इनकी हार होती। साथ ही भाजपा का साथ उन्हें नहीं मिला होता तो भी वो हार जाते।
नकारात्मक होने के बाद भी जदयू उम्मीदवार की ओर है हवा का रुख
पॉलिटिकल एक्सपर्ट विमल कुमार कहते हैं कि दलगत प्रणाली है। इस कारण लोग राजनीतिक दल को देख रहे हैं। जबकि, राजनीतिक दल धन बल में मजबूत लोगों को टिकट देकर अपना उम्मीदवार बना रही है। वैसे देश में NDA की ओर हवा का रुख है। लोगों का रुझान भी इसी ओर है। वहीं, स्थानीय स्तर पर देखें तो उम्मीदवार के प्रति लोग नकारात्मक हैं।
हर तबके का मिल रहा है सपोर्ट
राजद के जिलाध्यक्ष दिलीप कुमार सिंह का दावा है कि उनके गठबंधन के उम्मीदवार प्रेमनाथ चंचल गोपालगंज से चुनाव जीत रहे हैं। क्योंकि, उनके उम्मीदवार को सभी जाति, धर्म और समुदाय के लोगों का समर्थन मिल रहा है। वो एक मिलनसार और सभी वर्ग के लोगों के बीच रहने वाले व्यक्ति हैं। हर तबके के लोगों से उनका सामाजिक सरोकार रहा है। इसलिए हवा का रुख इनके ओर ही है। गोपालगंज की जनता इन्हें इंडिया में इंडिया गठबंधन की सरकार बनाने के लिए वोट करेगी। प्रेमनाथ ने यहां की जनता से वादा किया है कि वो चुनाव जीतने के बाद भी उनके बीच में ही रहेंगे। मूलभूत समस्याओं को ठीक करेंगे। लंबी दूरी की ट्रेनों का नहीं होना यहां के लिए सबसे बड़ी समस्या है।
जदयू के जिला प्रवक्ता ब्रज किशोर सिंह का दावा है कि 2019 में यहां के लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भरोसा जताया था। यही कारण है कि हमारे उम्मीदवार डॉ. आलोक कुमार सुमन भारी मतों से चुनाव जीते थे और सांसद बने थे।
अब एक फिर से गोपालगंज की जनता प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के किए विकास कार्यों पर अपना विश्वास जता रही है। इस बार हमारे उम्मीदवार की ऐतिहासिक जीत होने जा रही है। दूसरा ऐसा मौका होगा कि कोई उम्मीदवार यहां से दूसरी बार सांसद बनेगा।
3. पूर्वी चंपारण में विपक्ष का कुशवाहा कार्ड
कुशवाहा के साथ ही मल्लाह का कार्ड है। यहां से कई बार केन्द्र में मंत्री रहे, छह बार सांसद रहे और 10वीं बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे बीजेपी के धाकड़ नेता के आगे महागठबंधन ने युवा नेता और पूर्व विधायक राजेश कुशवाहा को उतारा है। वे मुकेश सहनी की वाआईपी से उम्मीदवार हैं।
रमा देवी और सुनील कुमार पिंटू का टिकट एनडीए में कट गया इस गुस्सा का फायदा महागठबंधन उठाने में लगा है। वैश्य, बीजेपी को वोट करते रहे हैं, लेकिन इस बार इस वोट बैंक को तोड़ने की कोशिश की रणनीति बनाई गई है। पूर्वी चंपारण में वैश्यों का वोट बैंक सबसे बड़ा यानी चार लाख के आसपास है।
राजेश कुशवाहा को यादवों और मुसलमानों का सॉलिड वोट मिल रहा है। यह वोट बैंक चार लाख के लगभग है। कुशवाहा तो महागठबंधन को वोट कर ही रहे हैं।
भूमिहार और राजपूत बीजेपी यानी राधामोहन सिंह को वोट कर रहे हैं। भूमिहारों की नाराजगी थोड़ी रहती है, लेकिन वे लालू प्रसाद वाले महागठबंधन के साथ नहीं जा सकते।
यहां राधामोहन सिंह ने नरेन्द्र मोदी के पीएम बनने के बाद काफी विकास का काम करवाया है। मोतिहारी रेलवे स्टेशन बापू धाम, चरखा पार्क, महात्मा गांधी सत्याग्रह स्मारक यहां दिखता है। यहां केन्द्रीय विश्वविद्यालय, कृषि अनुसंधान केन्द्र, मदर डेयरी आदि भी हैं। लेकिन न तो बंद पड़ी चीनी मिल खुली और न मेडिकल कॉलेज अब तक बना। लीची और आम यहां खूब है पर उससे जुड़े उद्योग नहीं। खेती करने वाले लोगों का पलायन साल में 8-9 महीने के लिए हो जाता है।
इतनी बड़ी मोती झील, मोतिहारी शहर के बीचो-बीच है पर इसका सौंदर्यीकरण नहीं दिखता। मछली का बेहतर उत्पादन कर बिहार को आर्थिक मजबूती दी जा सकती है पर ज्यादातर मछली यहां भी बाहर की बिक रही है। पूर्वी चंपारण में राधामोहन सिंह बीजेपी से सांसद हैं। कृषि मंत्री रहते हुए और साधारण सांसद रहते हुए भी उन्होंने विगत 10 वर्षों में और पांच वर्षों में जितना काम कराया है, उतना काम किसी एमपी ने अलग-बगल के लोकसभा में नहीं कराया है। कृषि के क्षेत्र में पिपराकोठी में कम से कम 10 इंस्टीट्यूट की स्थापना कराई। कृषि विज्ञान केन्द्र, हॉटिकल्चर कॉलेज, रिसर्च सेंटर, फूड प्रसंस्करण केन्द्र, मिट्टी जांच केन्द्र बनवाया। महात्मा गांधी विश्वविद्याल बनवाया, बिजलीकरण करवाया। काफी काम उन्होंने करवाया पर उन्हें लोकसभा चुनाव में चैलेंज मिल रहा है। मुझे लगता है कि इसकी बड़ी वजह एंटी इनकंबेंसी है।
4. वैशाली में मोदी की वजह से NDA उम्मीदवार का पलड़ा भारी
उत्तर बिहार संसदीय क्षेत्र की राजनीति ऐसी है कि पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण, वाल्मीकि नगर, शिवहर, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर की राजनीति एक दूसरे को प्रभावित करती है। जिन लोकसभा क्षेत्रों में लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव ने कुशवाहा कार्ड खेला है उसमें एक पूर्वी चंपारण भी है।
वैशाली लोकसभा की सीट 1977 में अस्तित्व में आई थी। इस लोकसभा क्षेत्र में कुल 6 विधानसभा हैं। इसमें अकेले वैशाली के अलावा मीनापुर, कांटी, बरुराज, पारू और साहेबगंज विधानसभा क्षेत्र मुजफ्फरपुर जिले के हैं। वैशाली लोकसभा क्षेत्र में शुरुआत से ही जातिवाद हावी रही है। राजपूत और भूमिहार जाति के लोग बड़े राजनीतिक दलों से उम्मीदवार बने और फिर चुनाव जीतकर सांसद। लेकिन, फिर भी वैशाली की जिस धरती पर भगवान महावीर का जन्म हुआ, उसका जो विकास होना चाहिए था। वो पिछले 47 सालों में नहीं हुआ है। खासकर पिछले 10 सालों में NDA से दो सांसदों ने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। मगर, उनके एक्टिव नहीं रहने से वैशाली की जनता में नाराजगी है।
2019 के लोकसभा चुनाव में लोजपा की वीणा देवी 5 लाख 68 हजार 215 वोट मिले थे। ये एक बड़े अंतर की जीत थी। पर अब इनक प्रति जनता में बेहद नाराजगी है। कारण है कि उन्होंने कोई काम इस क्षेत्र के विकास के लिए नहीं किया। साथ ही जनता से दूरी बनाकर रखी। बावजूद इसके 2024 के इस चुनाव में राजपूत जाति से आने वाली वीणा देवी को लोजपा (रामविलास) ने अपना उम्मीदवार बनाया है।
इस बार इनका मुकाबला लालगंज के रहने वाले राजद के उम्मीदवार विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला से है। जो बाहुबली होने के साथ ही भूमिहार जाति से आते हैं। इन दोनों के बीच कड़ी टक्कर है। दावा यहां तक किया जा रहा है कि निर्णायक भूमिका निभाने वाले भूमिहार समाज के अधिकांश लोग मुन्ना शुक्ला के पक्ष में आ गए हैं।
मगर, इसके बाद भी यहां एक बड़ा फैक्टर काम कर रहा है। वो है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम। वैशाली के लोगों ने बताया कि वो वीणा देवी को नहीं जानते और न ही वो उनके चेहरे को देख रहे हैं। वो सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी को जानते हैं। उनके ही चेहरे को देख कर वो अपना वोट डालेंगे। इस कारण वैशाली में हवा का रुख NDA उम्मीदवार की ओर है।
इनकी नजर में महागठबंधन के उम्मीदवार भारी
सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट के अनुसार वैशाली की लड़ाई बहुत टफ हो गई है। वोट के हिसाब से महागठबंधन के उम्मीदवार भारी लग रहे हैं। धनबल के कारण वो हावी हैं। यहां स्थानीय मुद्दा गायब है। एक तरफ नरेंद्र मोदी और दूसरी तरफ लालू प्रसाद पर दांव लगा हुआ है।
1977 से लेकर अब तक भूमिहार और राजपूतों का ही वैशाली पर कब्जा रहा है। सबसे अधिक ढाई लाख वोटों के साथ भूमिहार यहां के निर्णायक वोटर हैं। क्षेत्र में अपने-अपने उम्मीदवार को जिताने का खेल चल रहा है।
साइलेंट हैं यहां के वोटर्स
सीनियर जर्नलिस्ट कहते हैं कि काम को लेकर वर्तमान सांसद वीणा देवी से लोगों की नाराजगी है। लेकिन, वीणा देवी को अपने राजपूत जाति के वोटों पर भरोसा है। साथ ही NDA के घटक दलों के परंपरागत वोट भी सेफ माने जा रहे हैं। दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन से राजद के उम्मीदवार मुन्ना शुक्ला हैं, जो भूमिहार जाति से हैं। उन्हें भी भरोसा है कि गठबंधन के परंपरागत वोट मिल जाएंगे। साथ में भूमिहार जाति के बीच इस बात को मुद्दा बनाकर उठाया जा रहा है कि पिछले 10 साल तक भूमिहार NDA के साथ रहा। अब राजद ने अपनी जाति के व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया है। इसके आधार पर उन्हें एकजुट किया जा रहा है।
बड़े अंतर से जीत का दावा
भाजपा के मुजफ्फरपुर जिलाध्यक्ष रंजन कुमार वैशाली लोकसभा के भी प्रभारी हैं। इनका दावा है कि NDA की उम्मीदवार वीणा देवी बहुत बड़े अंतर से इस चुनाव को जीतने जा रही हैं। हवा का रुख इनकी ओर ही है। अबकी बार फिर से मोदी सरकार और 400 पार का नारा पूरा होगा। हम वैशाली की सीट जीतने जा रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं है।
हमारे उम्मीदवार को मिल रहा है समर्थन
अरविंद कुमार कांग्रेस के जिलाध्यक्ष हैं। इनका दावा है कि वैशाली से इंडिया गठबंधन व राजद के उम्मीदवार मुन्ना शुक्ला के जीत होगी। जिस तरह से तेजस्वी यादव की सभा में लोगों की भीड़ उमड़ रही है, वो पैसों पर लाई गई भीड़ नहीं है। ऐसा में पूरी उम्मीद है कि लोगों का समर्थन हमारे गठबंधन के उम्मीदवार को मिल रहा है।
पिछले चुनाव में जीत-हार का अंतर
2019 में हुए लोकसभा चुनाव में लोजपा की वीणा देवी ने वैशाली सीट से 5 बार के सांसद रहे राजद के उम्मीदवार रघुवंश प्रसाद सिंह को बड़े अंतर से हराया था। उस वक्त वीणा देवी को 5 लाख 68 हजार 215 वोट मिले थे। वोट प्रतिशत 52.87 प्रतिशत था और ये एक बड़ी जीत थी। जबकि, रघुवंश प्रसाद सिंह को 3 लाख 33 हजार 631 वोट मिले थे। जीत हार के बीच 2 लाख 34 हजार 584 वोटों का अंतर था।
5. शिवहर में वैश्य एकजुट हुए तो रितु जायसवाल की जीत पक्की
शिवहर बिहार का सबसे पिछड़ा जिला है। यहां के आम लोग बहुत पूछने पर भी ठीक से अपनी बात नहीं रखते। शिवहर लोकसभा से जुड़े गांवों में जाएं तो लोगों को लग रहा है कि सड़क बन गई, बिजली आ गई तो काफी विकास हो गया। वे विकास की नई धारा से अछूते दिखते हैं। राजकीय उर्दू मध्य विद्यालय, हनुमान नगर के स्कूल को आप देखेंगे तो डर जाएंगे। इसकी मरम्मत का काम चल रहा है। स्कूल इतना जर्जर है कि आश्चर्य होता है अब तक यहां के बच्चे कैसे यहां पढ़ रहे थे। शिवहर में रेल पटरी अब तक नहीं पहुंची है। वर्षों से इसकी कोशिश हो रही हैं। शिलान्यास हो रहे, लेकिन जमीन अधिग्रहण का काम पूरा नहीं हुआ अब तक। रीगा चीनी मिल बंद पड़ी है। कोई बड़ा शिक्षण संस्थान नहीं है। शिवहर कई तरह से सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर पर आश्रित दिखता है। रघुनाथ झा ने शिवहर को जिला बनवा दिया था। शिवहर लोकसभा में उद्योग नहीं हैं, नतीजा पलायन खूब है। बागमती और ललबकिया नदी पर पुल चाहिए इसका आंदोलन लंबे समय से चल रहा, लेकिन लोग मजबूर होकर नदी होकर जा-आ रहे।
शिवहर विधानसभा से विधायक हैं आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद। वे आरजेडी से विधायक चुने गए थे पर पलटी मार कर जेडीयू की तरफ चले गए हैं। कृष्णैया हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काटने और जेल मैनुअल में संशोधन के बाद आनंद मोहन जेल से बाहर आ गए हैं पर वे चुनाव नहीं लड़ सकते इसलिए उनकी पत्नी लवली आनंद को जेडीयू ने टिकट दिया है। लवली आनंदी की ताकत आनंद मोहन के साथ ही नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार हैं। दूसरी तरफ आरजेडी ने सोशल एक्टिवस्ट रहीं रितु जायसवाल को टिकट दिया है। सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया के तौर पर रितु जायसवाल ने अपना चेहरा विकास के नाम पर गढ़ा है।
शिवहर में आनंद मोहन पूरी ताकत लगा रहे हैं। चर्चित बयान दे रहे हैं। वे अपन बयानों में फंसते भी दिख रहे हैं। उनके बयान ही लवली आनंद के लिए राजनीतिक-काल नहीं बन जाएं इसकी आशंका है। बाहुबली वाली छवि बयानों में भी दिख रही है।
रितु जायसवाल कह रही हैं कि उनकी असली लड़ाई लवली आनंद से नहीं बल्कि आनंद मोहन से है। बता दें आनंद मोहन यहां से दो बार 96 और 98 में सांसद रह चुके हैं। रमा देवी वैश्य जाति से आती हैं इस बार यह सीट जेडीयू के खाते में चली गई इसलिए सीटिंग एमपी रमा देवी का टिकट कट गया। रमा देवी 2009, 2024 और 2019 में शिवहर से सांसद रही। वे बृजबिहारी की पत्नी हैं।
98 में पूर्व मंत्री बृजबिहारी की हत्या पटना के आईजीआईएमएस में कर दी गई थी। वे दबंग नेता थे। यहां से 99 में आरजेडी के मो. अनवारुल हक, 2004 में आरजेडी के ही सीताराम सिंह लोकसभा का चुनाव जीते थे। रितु जायसवाल पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रही हैं। पूरे बिहार की नजर इस सीट पर इसलिए लगी हुई है कि आनंद मोहन की प्रतिष्ठा यहां से दांव पर लगी है। यहां से अब तक जीते 10 सांसदों में से 7 राजपूत ही रहे हैं। वैश्य जाति से आने वाली रितु जायसवाल को आरजेडी ने उतारा है। उनकी ताकत तेजस्वी यादव की नौकरी देने की छवि के साथ ही कांग्रेस और लेफ्ट है।
रितु जायसवाल की अपनी छवि पार्टी की छवि से ऊपर है। वैश्य बीजेपी को चुनते हैं या रितु जायसवाल को यह बड़ा चैलेंज है। जो वैश्य उम्मीदवार की छवि देखकर वोट करेंगे वे रितु जायसवाल को चुन रहे हैं जो बीजेपी के कैडर हैं वे बाहुबली आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद को चुन रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि शिवहर वैश्यों का गढ़ रहा है। यहां से रमा देवी अच्छे खासे वोट से जीतती रही हैं। एनडीए में उनका टिकट काटकर लवली आनंद को टिकट दिया गया। इसका असर व्यापक रूप से पड़ रहा है। सीतामढ़ी में सुनील कुमार पिंटू का टिकट काटा गया एनडीए में।
6. सीवान में हिना की हवा ने बढ़ाई एनडीए की मुश्किल
सीवान लोकसभा का चुनाव काफी दिलचस्प मोड़ पर है। इस बार यहां त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। एक तरफ जहां निर्दलीय कैंडिडेट हिना शहाब की हवा ने एनडीए के कैंडिडेट की मुश्किल बढ़ा दी है, वहीं महागठबंधन से आरजेडी कैंडिडेट अवध बिहारी चौधरी ने भी जातीय समीकरण से मजबूती बनाई है।
जातीय समीकरण ने तो चुनावी पंडितों की गणित फेल कर दी है। एक्सपर्ट की माने तो वोटिंग तक मुकाबला हिना और एनडीए कैंडिडेट के बीच सिमट जाएगा। क्योंकि आरजेडी का एमवाई समीकरण भी डगमगा रहा है। जानिए सीवान लोकसभा सीट पर क्या है चुनावी समीकरण।
सीवान में टफ होता जा रहा चुनावी मुकाबला
सीनियर जर्नलिस्ट मनीष कुमार इस बार के लोकसभा चुनाव को काफी टफ मानते हैं। वह कहते हैं, शुरू से ही काफी टफ दिख रहा है। दलीय आधार पर ही पूरा समीकरण बन रहा है। इस बार चुनाव में सबसे बड़ी बात है कि निर्दलीय चुनाव लड़ रहीं हिना शहाब मजबूती से फाइट कर रही हैं। हिना के फाइट में आने की वजह एनडीए से जेडीयू की कैंडिडेट विजय लक्ष्मी का रिएक्शन है। विजय लक्ष्मी के पति रमेश सिंह कुशवाहा जीरादेई से विधायक रहे हैं। उनकी छवि शुरू से ही माले के नेता के रूप में उभरकर सामने आती रही है। इस कारण उन्हें चुनाव में सवर्ण वोटरों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। विजय लक्ष्मी के पास राजनीतिक अनुभव की कमी भी उनके लिए मुश्किल पैदा कर रहा है।
एनडीए से विरोध करने वाले हिना के साथ
एनडीए कैंडिडेट का विरोध करने वाले कुछ सवर्ण हिना शहाब के साथ जुड़ रहे हैं। सवर्णों के एक तबके का हिना के साथ जुड़ना उन्हें फाइट में काफी मजबूत कर रहा है। इसके अलावा मुस्लिम मतदाता पूरी तरह से हिना शहाब के साथ हैं। चुनाव में हिना ने काफी सूझबूझ दिखाई है, वह सर्व धर्म को समभाव से साथ लेकर चलने का प्रयास कर रही हैं। वह हिंदू और मुस्लिम मतदाताओं के साथ शुरू से ही जुड़ने का प्रयास कर रही हैं। एक्सपर्ट मानते हैं कि हिना शहाब पति की विरासत को बचाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं।
अवध के लिए प्रतिष्ठा बचाने की बड़ी चुनौती
एक्सपर्ट मानते हैं, आरजेडी कैंडिडेट अवध बिहारी चौधरी के लिए प्रतिष्ठा बचाना बड़ी चुनौती है। वह पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। सीनियर जर्नलिस्ट मनीष कुमार कहते हैं कि हम आरजेडी को हल्के में नहीं ले सकते हैं। अवध बिहारी चौधरी के साथ सबसे बड़ी बात है कि जातिगत वोट उनके साथ दिखाई दे रहा है।
इसके अलावा भी अन्य जाति के वोटर्स उनके समर्थन में खड़े दिख रहे हैं। एमवाई समीकरण तो पूरा फिट नहीं हो रहा है, लेकिन वाई समीकरण का तो पूरा लाभ उन्हें मिल रहा है। यादव के साथ अन्य जातियों का वोट भी वह डायवर्ट कर रहे हैं।
मुद्दा नहीं बस कास्ट और मोदी फैक्टर
मोदी फैक्टर को लेकर एक्सपर्ट कहते हैं, इस बार के लोकसभा चुनाव में कोई भी स्थानीय मुद्दा दिखाई नहीं दे रहा है। चुनाव के कैंडिडेट कोई भी आ जा रहे हैं, मतदाता दिल्ली को ही देख रहे हैं। ऐसे में मोदी का सीवान में आना बड़ा काम कर सकता है।
मोदी की रैली के बाद वोटर्स का रुख बदल सकता है। इसका फायदा एनडीए को पूरी तरह से मिल सकता है। इसलिए सीवान मोदी फैक्टर से अछूता नहीं है। यहां भी कैंडिडेट्स के बजाय मोदी के चेहरे पर वोट पोल हो सकता है। अगर फाइट की बात करें तो अब तक के जो हालात हैं, मोदी का मैजिक बहुत कुछ बदल सकता है।
त्रिकोणीय मुकाबले में कई गणित फेल
नेशनल मीडिया में लंबे समय तक काम करने वाले और चंदौली के सबिता पब्लिक स्कूल के डायरेक्टर प्रताप शेखर सिंह कहते हैं, त्रिकोणीय मुकाबला में वोटों का अंतर कम ही दिख रहा है। एक तरफ जहां एनडीए से जेडीयू की विजय लक्ष्मी कुशवाहा हैं, वहीं महागठबंधन से आरजेडी के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष अवध विधारी चौधरी हैं।
आरजेडी से अलग होकर निर्दलीय मैदान में उतरीं पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब भी फाइट कर रही हैं। इन तीनों कैंडिडेट्स के बीच सीवान लोकसभा सीट पर दिलचस्प मुकाबला है।
अवध बिहारी चौधरी के साथ आरजेडी समर्थित लोग दमदारी से लगे हैं, कुछ लालू तो कुछ तेजस्वी के नाम पर समर्थन में हैं। हिना शहाब के साथ मुस्लिम मतदाता समर्थन में हैं। इसके साथ पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के समर्थक भी पूरी दमदारी के साथ हिना के साथ हैं।
एनडीए कैंडिडेट के साथ डबल फेस
जर्नलिस्ट प्रताप शेखर सिंह कहते हैं, एनडीए से जेडीयू के कैंडीडेट विजय लक्ष्मी के साथ डबल फेस है। एक तो नीतीश कुमार का चेहरा है, दूसरा मोदी का मैजिक भी साथ है। पीएम मोदी का फेस तो सबसे बड़ा फैक्टर है। मोदी का चेहरा जेडीयू कैंडिडेट के साथ बड़ी ताकत है।
कुल मिलाजुलाकर सीवान का जो चुनावी समीकरण है, इन तीनों कैंडिडेट्स के बीच ही है। लोकसभा चुनाव में पीएम का चेहरा मायने रखता है। इसलिए मोदी का फैक्टर पूरी तरह से काम करेगा। मोदी फैक्टर पर वोट करने वाले वोटर्स शांत रहते हैं।
वोटिंग के दिन बदल सकता है समीकरण
प्रताप शेखर सिंह कहते हैं, विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर मोदी के चेहरे पर वोट करते हैं। सीवान के लिए मोदी का दौरा इस फैक्टर को और मजबूत कर सकता है। मोदी फैक्टर के आगे तो कैंडिडेट्स फैक्टर भी नजर अंदाज कर दिए जाते हैं। कैंडिडेट्स से अधिक मोदी के नाम पर वोट पड़ता है।
ऐसे ही हिना शहाब के खाते में भी उनके समुदाय से अवाला अन्य वर्गों का भी अधिक संख्या में समर्थन देखा जा रहा है। बात टक्कर देने की करें तो त्रिकोणीय मुकाबला में भी ऐसे हालात बन रहे हैं, जिसमें एनडीए के कैंडिडेट और हिना शहाब के बीच कड़ा मुकाबला हो सकता है। वोटिंग के दिन सीवान का समीकरण बदल सकता है, जिसके बाद कुछ नए गणित सेट हाे सकते हैं।
जातीय समीकरण का गणित जानिए
जर्नलिस्ट प्रताप शेखर सिंह बताते हैं, सीवान लोकसभा क्षेत्र में सीवान, बड़हरिया, दरौंदा, जीरादेई, रघुनाथपुर और दरौली विधानसभा सीट शामिल हैं। जिले में करीब 24 लाख से ज्यादा वोटर हैं। सीवान लोकसभा सीट पर करीब 18 लाख मतदाता हैं. इसमें 9,85,125 पुरुष और 7,90,829 महिला मतदाता हैं।
जातियों के आधार पर संख्या देखें तो मुस्लिम लगभग 3 लाख, यादव लगभग 2.5, वहीं कुशवाहा वोर्टस की संख्या लगभग 1.25 लाख है जबकि सहनी 80 हजार के आस-पास हैं जबकि अपर कास्ट के वोटर्स की संख्या लगभग 4 लाख और ईबीस 2.5 लाख है।
7. पश्चिम चंपारण में सांसद के विरोध के सामने फीकी मोदी लहर
पश्चिम चंपारण लोकसभा सीट से परिसीमन के बाद पिछले 15 वर्षों से लगातार बीजेपी के संजय जायसवाल जीतते आ रहे हैं। 2019 के चुनाव में तो इनकी जीत का मार्जिन 2 लाख के पार चला गया था। महात्मा गांधी की कर्मभूमि रहे इस जिले को भाजपा का गढ़ भी माना जाता है। लेकिन, इस बार जहां बिहार में मोदी लहर की चर्चा है तो इस सीट पर यहां के लोग परिवर्तन की लहर पर सवार हैं।
पश्चिम चंपारण लोकसभा सीट के अलग-अलग इलाकों में घूमने के बाद, यहां के मुद्दों को समझने के बाद और एक्सपर्ट से यहां की स्थिति जानने के बाद ये मालूम पड़ता है कि पश्चिम चंपारण इकलौती ऐसी सीट है, जहां कांग्रेस बीजेपी पर भारी दिखाई पड़ रही है।
इसके दो प्रमुख कारण हैं-
1. विरोध के बाद भी संजय जायसवाल को रिपीट करना
पश्चिम चंपारण लोकसभा सीट से संजय जायसवाल तीन बार से लगातार सांसद हैं। इस बार चर्चा थी कि पार्टी उनकी जगह नए चेहरे पर दांव लगा सकती है। सूत्रों की मानें तो बीजेपी और आरएसएस के इंटरनल सर्वे में भी उनके खिलाफ नाराजगी की बात सामने आई थी लेकिन पार्टी ने यहां से संजय जायसवाल को एक बार फिर से यहां से उम्मीदवार बनाया। इसके कारण बीजेपी के कोर वोट बैंक में नाराजगी है।
युवा सोनल चौबे प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते हैं। कहते हैं कि उनके दिल में हमेशा से भाजपा ही रही है। लेकिन, इस बार संजय जायसवाल से सभी को नाराजगी है। इस बार हम बदलाव चाहते हैं। एक ही आदमी को बार-बार मौका देंगे तो विकास ठहर जाएगा।
2. मदन मोहन तिवारी की छवि का कांग्रेस को मिल रहा लाभ
पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि महागठबंधन के तहत कांग्रेस को बेतिया सीट मिलने के बाद उनके लिए कैंडिडेट ढूंढ़ पाना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में आनन-फानन में मदन मोहन तिवारी का नाम फाइनल किया गया। ये न केवल तिवारी के लिए फायदेमंद रहा बल्कि कांग्रेस को भी इसका लाभ मिलता हुआ दिखाई दे रहा है।
मदन मोहन तिवारी मुखिया से लेकर विधायकी का चुनाव तक जीत चुके हैं। इसके बाद भी पश्चिम चंपारण में सबसे ज्यादा अगर चर्चा है तो उनकी सहजता का। लोग उनकी तुलना संजय जायसवाल से कर रहे हैं। संजय जायसवाल जहां मुश्किल से लोगों से मिलते हैं तो मदन मोहन तिवारी आसानी से लोगों के लिए उपलब्ध रहते हैं।
कैंडिडेट से नाराजगी, मोदी को सपोर्ट कर रहे लोग-पॉलिटिकल एक्सपर्ट
पश्चिम चंपारण के वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि पश्चिम चंपारण में पहली बार लग रहा है कि लड़ाई है। इस बार यहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच नेक टू नेक फाइट है।
बीजेपी की बूथ मैनेजमेंट कमेटी ने किया डैमेज कंट्रोल
अवध किशोर तिवारी के मुताबिक नॉमिनेशन के दिन तक पश्चिम चंपारण में हवा का रुख बीजेपी के खिलाफ थी. लेकिन बीजेपी की जो बूथ मैनेजमेंट कमेटी है। उसने इस नाराजगी के खिलाफ काफी सुधार किया है। चुनाव से पहले इसमें और सुधार हो सकते हैं। नाराजगी के बाद भी एक तस्वीर ये बन रही है रिजल्ट बीजेपी के पक्ष में जाए।
8. वाल्मीकि नगर लोकसभा क्षेत्र में कांटे की टक्कर
गंडक, सोनहा और तमसा के संगम स्थल पर बसा वाल्मिकी नगर मां सीता की शरण स्थली के रूप में भी जाना जाता है। इस क्षेत्र में इस बार का चुनाव कई लिहाज से दिलचस्प हो गया है। नीतीश कुमार ने जहां अपने पुराने सिपाही सुनील कुमार पर पासा फेंका है तो लालू प्रसाद यादव ने चुनावी बेला में भाजपा को छोड़ राजद में आए दीपक यादव को अपना उम्मीदवार बना दिया है। इसके बाद इलाके में एनडीए का पूरा समीकरण बिगड़ गया है।
दो पिछड़ा के मैदान में उतरने से एनडीए के गढ़ कहे जाने वाले वाल्मीकि नगर में मुकाबला कांटे का हो गया है। यहां के अलग-अलग इलाकों में घूमने और लोगों की राय जानने के बाद समझ में आता है कि यहां अब जीत की चाबी ब्राह्मण के पास है। ये जिनका साथ देंगे जीत उनकी होगी। इसमें एनडीए उम्मीदवार बाजी मारते हुए दिखाई दे रहे हैं।
एनडीए ने अपने सवर्ण नेताओं को एक्टिव किया
वाल्मीकि नगर में अगर जातीय आंकड़ों की बात करें तो यहां सवर्ण वोटर्स में सबसे बड़ी आबादी लगभग 2.50 लाख वोटर्स ब्राह्मण के हैं। ये अभी तक एनडीए उम्मीदवार का साथ देते रहे हैं, लेकिन पहली बार इसमें महागठबंधन सेंधमारी करते हुए दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि अब बीजेपी ने अपने सवर्ण नेता को इलाके में एक्टिव कर दिया है। सबसे बड़ी जिम्मेदारी भाजपा के राज्यसभा सांसद और वाल्मीकि नगर से पूर्व सांसद रहे सतीश चंद्र दुबे को दी गई है। वे इलाके में सभी नाराज वोटर्स को मनाने में जुट गए हैं। इसमें उनका साथ लोजपा (आर) के प्रदेश अध्यक्ष राजन तिवारी का भी साथ मिल रहा है।
थारू ने बिगाड़ा एनडीए का समीकरण
एनडीए के सामने केवल सवर्ण वोटर्स को मनाने की ही चुनौती नहीं है, बल्कि वाल्मीकि नगर में बीजेपी के लिए समर्पित रहे थारू जनजाति का रुख भी इस बार बदल रहा है। मौजूदा सांसद से नाराजगी के कारण इस बार थारु इलाके में भी बदलाव की बयार चल रही है। यहां कुछ लोग खुलकर महागठबंधन में जाने की बात करते हैं तो कुछ सांसद से नाराजगी और पीएम मोदी को सपोर्ट करने की बात करते हैं।