लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में बिहार की पांच सीटों पर 20 मई को मतदान होना है। इनमें सीतामढ़ी, मधुबनी, सारण, मुजफ्फरपुर और हाजीपुर सीट शामिल हैं। इन पांच सीटों में से 4 जनरल सिर्फ एक हाजीपुर सुरक्षित सीट है।
इस चुनाव में कई दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है। लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के सुप्रीमो चिराग पासवान की किस्मत कैद होने वाली है, तो वहीं लालू प्रसाद यादव की लाडली बेटी रोहिणी आचार्य के भाग्य का फैसला भी इसी चरण में होना है। मुजफ्फरपुर को छोड़ दें तो बाकी चार सीटों पर नए प्रत्याशी पुराने योद्धाओं को टक्कर दे रहे हैं।
इन 5 सीटों पर हवा का रुख किस ओर जा रहा है? किसकी स्थिति मजबूत है? कौन किस पर और क्यों भारी है? यह जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम ने पांचों सीटों पर आम लोगों, पत्रकारों और पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स से बात की। इस बातचीत के जरिए इन पांचों सीटों का माहौल समझने की कोशिश की है।
5 सीटों में तीन मुजफ्फरपुर, हाजीपुर और मधुबनी में एनडीए का पलड़ा भारी दिख रहा, जबकि सीतामढ़ी और सारण में टफ फाइट नजर आती है। सीतामढ़ी में जेडीयू ने कैंडिडेट तो बदल दिया है, लेकिन एक्सपर्ट की मानें तो राजद ने हर जाति के वोट बैंक में सेंधमारी की है।
वहीं, सारण में हवा तो रूडी की दिख रही, लेकिन 5% अति पिछड़ा वोटर्स टूटकर रिजल्ट बदल सकते हैं। 2019 के चुनाव में इन पांच सीटों पर एनडीए के प्रत्याशी जीते थे।
हाजीपुर लोकसभा सीट……………..
गंगा और गंडक के किनारे बसे शहर हाजीपुर की पहचान देशभर में यहां के केले और आम से है। इसके अलावा यहां की एक पहचान रामविलास पासवान भी हैं। 1977 से लेकर लगातार 2019 तक इस सीट पर वही जीता है, जिसे रामविलास पासवान ने जिताना चाहा है। बीच में केवल दो बार 1984 और 2009 को छोड़ दें तो पिछले 47 सालों से लगातार उनका परिवार संसद में यहां का प्रतिनिधित्व करते आ रहा है।
इस बार पहली बार रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। ये चुनाव उनके लिए राजनीतिक और भावनात्मक दोनों रूप से काफी अहम है। यह पहला मौका है जब रामविलास पासवान की गैरहाजिरी में न केवल वे अपनी पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं, बल्कि अपने पिता की विरासत को भी बचाने में भी जुटे हैं।
हाजीपुर के अलग-अलग इलाकों में घूमने के बाद यहां के लोगों को समझने और एक्सपर्ट की राय जानने के बाद ये जो बातें समझ आती हैं कि उसके हिसाब से चिराग पासवान यहां की रेस में सबसे आगे हैं। तेजस्वी और लालू प्रसाद यादव की नीतियों ने मुकाबला जरूर रोचक बना दिया हो, लेकिन चिराग पासवान जीतते हुए दिखाई दे रहे हैं। जमीन पर इसके तीन कारण हैं।
मोदी और रामविलास के चेहरे का सपोर्ट
चिराग पासवान हमेशा से खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान कहते आ रहे हैं। हाजीपुर में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली हुई तो उन्होंने चिराग पासवान को न केवल अपना बेटा बताया बल्कि जमीन से जुड़ा हुआ इंसान भी बताया।
चुनाव में इसका सीधा फायदा चिराग पासवान को मिलता हुआ दिखाई दे रहा है। एक तो गठबंधन दूसरा मोदी की सभा के बाद हर वर्ग के लोग चिराग पासवान के पक्ष में खड़े दिखाई दे रहे हैं।
इसके अलावा पिता रामविलास पासवान के कारण भी लोगों के मन में उनके प्रति सहानुभूति है। लोग ये कहते हुए आसानी से मिल जाते हैं कि रामविलास पासवान ने हाजीपुर के लिए बहुत कुछ किया है। पहली बार उनका बेटा मैदान में है तो हम उन्हें सपोर्ट करेंगे।
श्रवण भगत पेशे से मजदूर हैं। कहते हैं कि हम तो हेलिकॉप्टर छाप हैं। हमारी अपनी चॉइस है। रामविलास पासवान 1971 से हम लोगों के बीच हैं। जैसे रामविलास पासवान जीते हैं, वैसे ही चिराग पासवान जीतेंगे।
चिराग के पक्ष में ज्यादातर जातियों की गोलबंदी
चिराग पासवान ने अपने नॉमिनेशन के दौरान ये मैसेज देने की कोशिश की थी कि उनके साथ AtoZ जातियां खड़ी हैं। उनके इस मैसेज का असर जमीन पर भी दिखाई दे रहा है। दलित खासकर पासवान जहां पहले ही मजबूती से चिराग पासवान के साथ खड़े हैं।
बीजेपी के कारण सवर्ण और वैश्य वोटर्स का सपोर्ट भी चिराग पासवान को मिल रहा है। वहीं, नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा का भी भरपूर सपोर्ट यहां चिराग पासवान को मिल रहा है।
हालांकि, दूसरी तरफ तेजस्वी यादव के साथ यादव और मुस्लिम जरूर एकजुट हैं, लेकिन जातियों की इस गोलबंदी में यहां चिराग पासवान बाजी मारते हुए दिखाई दे रहे हैं। कुछ हद तक यादव भी चिराग पासवान को सपोर्ट कर रहे हैं।
जाति की बाउंड्री तोड़कर युवा चिराग के साथ हैं
हाजीपुर में चिराग पासवान को युवाओं का भी भरपूर सपोर्ट मिल रहा है। चिराग को लेकर यहां युवाओं में उत्साह राज्य के अन्य हिस्सों से बिल्कुल अलग है। यहां कास्ट लाइन से अलग हटकर इस बार युवा उन्हें यहां अपना समर्थन दे रहे हैं।
ये उनके वादों और दावों पर यकीन कर रहे हैं। हाजीपुर रेलवे स्टेशन पर ऐसे ही एक रोहित से हमारी मुलाकात हुई । ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे रोहित ने कहा कि युवा चिराग के साथ हैं।
सुजीत जाति से कुशवाहा और पेशे से ड्राइवर हैं। इसी के सहारे वे अपने परिवार के 10 लोगों का भरण-पोषण करते हैं। कहते हैं कि चिराग पासवान ही हमारे नेता हैं। हमें नेता चुनना है, रिश्तेदारी नहीं निभानी है। चिराग पासवान में मुझे नेता नजर आता है इसलिए हम उन्हें वोट देंगे।
क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट हाजीपुर में हर दिशा से बह रही है हवा, मुकाबला दिलचस्प होगा
वरिष्ठ पत्रकार रविशंकर शुक्ला कहते हैं कि इस बार हाजीपुर में चारों दिशा से हवा चल रही है। शिवचंद्र राम और चिराग पासवान में आमने-सामने की लड़ाई है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है मुकाबला रोचक होते जा रहा है।
बेहद कम अंतर से होगी जीत-हार
सीनियर जर्नलिस्ट ज्योति कुमार कहते हैं कि शुरुआती समय में हवा का रुख पूरी तरह से चिराग पासवान के पक्ष में था। टिकट बंटवारे के बाद धीरे-धीरे वोटों का बिखराव होना शुरू हो गया। मौजूदा तस्वीर देखें तो मुकाबला दिलचस्प हो गया है। हार-जीत बेहद कम अंतर से होने वाली है। कोई भी जीतेगा बहुत कम वोट से जीतेगा।
मधुबनी लोकसभा सीट ………………..
मधुबनी लोकसभा सीट पर लालू के प्रयोग से भाजपा का रास्ता साफ हो गया है। साल 2029 के लोकसभा चुनाव में लगभग साढ़े 4 लाख वोटों से जीत दर्ज कराने वाले भाजपा के अशोक यादव इस बार भी कमल खिलने का दावा कर रहे हैं।
महागठबंधन के कैंडिडेट अली अशरफ फातमी लालू के प्रयोग माने जा रहे हैं। महागठबंधन में सीटों का बंटवारा हाेने से पहले ही आरजेडी ने उन्हें मधुबनी का कैंडिडेट बनाया था।
एमवाई समीकरण साधने के लिए लालू यादव ने बड़ा प्रयोग किया था, लेकिन एम तो जुड़ा वाई में बिखराव कैंडिडेट को कमजोर कर रहा है।
पहले जानिए बाप बेटे की कहानी
मधुबनी लोकसभा सीट पर अशोक कुमार यादव भाजपा के मौजूदा सांसद हैं। साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में अशोक कुमार यादव ने विकासशील इंसान पार्टी के कैंडिडेट बद्री कुमार पूर्बे को 454940 वोटों से हराया था। भाजपा ने दूसरी बार उन्हें कैंडिडेट बनाया है।
अशोक यादव के पिता हुकुमदेव नारायण इस सीट पर सबसे अधिक 5 बार सांसद रहे हैं। इसके पहले 2014 में अशोक के पिता ने पांचवीं बार जीत दर्ज की थी। साल 2014 में हुकुमदेव नारायण ने अब्दुल बारी सिद्दीकी को हराया था।
जातीय समीकरण में ऐसे फिट हो गए अशोक
सीनियर जर्नलिस्ट लव कुमार मिश्रा बताते हैं, मधुबनी में ब्राह्मण वोटों की संख्या बहुत अधिक है। इसके बाद यादव वोटर्स आते हैं। वहीं अतिपिछड़ा वोटर्स की संख्या भी लगभग 6 लाख के आसपास हैं, जबकि दलित भी लगभग दो लाख की संख्या में हैं।
एनडीए से भाजपा कैंडिडेट अशोक कुमार यादव के लिए मोदी का फैक्टर तो सबसे अधिक काम करता है, दूसरा नंबर जातीय समीकरण का आता है।
यादव राजद के कोर वोटर्स हैं, लेकिन भाजपा के यादव कैंडिडेट के कारण इसमें बड़े पैमाने पर ध्रुवीकरण हो जाता है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है, जिसका सीधा फायदा अशोक यादव को हो रहा है।
2019 में जीत के वोटों के अंतर से समझिए गणित
सीनियर जर्नलिस्ट प्रोफेसर चंद्र शेखर झा आजाद कहते हैं, इस बार भी मधुबनी में एनडीए और महागठबंधन का सीधा मुकाबला है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए कैंडिडेट अशोक यादव ने साढ़े 4 लाख वोटों से जीत दर्ज की थी।
हालांकि इस बार साल 2019 वाली परिस्थितियां नहीं हैं, लेकिन फिर भी यहां मोदी का फैक्टर भारी है। जीत के लिए इतने वोटों का अंतर कवर करना महागठबंधन के लिए आसान नहीं होगा। इस बार मार्जिन कम हो सकता है, लेकिन जीत की तरफ अशोक यादव ही बढ़ रहे हैं।
परिस्थितियां बदली, लेकिन जीता का आधार नहीं
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वोटिंग राष्ट्रीयता के नाम पर हुई थी। हर वर्ग हर जाति के लोगों ने एक तरफा वोट किया था। सीनियर जर्नलिस्ट प्रोफेसर चंद्र शेखर झा आजाद का मानना है कि आज की मौजूदा परिस्थितियां वैसी नहीं हैं।
जहां तक जातीय समीकरण की बात है तो मुसलमान, यादव और ब्राह्मणों की संख्या अधिक है। इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी को दो वर्गों का वोट लगभग तय माना जा रहा है। लेकिन अगड़ी और ऊंची जाति के लोगों का वोट भाजपा को ही जाएगा।
अब जो बीच की जातियां हैं, जो पिछली बार भी अधिकांश संख्या में भाजपा वोट की थी, वह इस बार भी भाजपा की तरफ ही दिख रही हैं। यह वोट जिसको मिलेगा उसी के सिर जीत का ताज होगा।
इसकी पूरी संभावना है कि इस बार भी यह वोट एनडीए के खाते में ही आएगा। इसी आधार पर ऐसा माना जा रहा है कि अशोक यादव मधुबनी में फिर कमल खिलाएंगे।
कैंडिडेट चयन में जल्दबाजी
एक्सपर्ट का मानना है कि अगर महागठबंधन ने कैंडिडेट के चयन में थोड़ी गंभीरता दिखाई होती तो यहां का चुनावी गणित बदल सकता था।
लालू यादव ने महागठबंधन में मंथन के पहले ही अपना कैंडिडेट घोषित कर दिया था। जातीय समीकरण और एनडीए के कैंडिडेट अशोक यादव के विरोध पर मंथन के बाद कैंडिडेट सिलेक्ट किया गया होता तो निश्चित तौर पर रिजल्ट बदल सकता था।
जर्नलिस्ट कुमार अवधेश कहते हैं, राजद ने एमवाई समीकरण पर काम तो किया, लेकिन यह ध्यान नहीं दिया कि एनडीए का कैंडिडेट भी यादव वर्ग से है। ऐसे में वोटों का ध्रुवीकरण होना ही है। इसके साथ पिछड़े और दलित मतदाता भी एनडीए की तरफ हैं। यह स्थिति महागठबंधन के कैंडिडेट के पक्ष में कहीं से नहीं है।
वहीं जर्नलिस्ट प्रशांत झा कहते हैं कि गांवों में मौजूदा सांसद का भारी विरोध है, इसका अच्छा रिजल्ट महागठबंधन को मिल सकता था, लेकिन कैंडिडेट का समीकरण ही जल्दबाजी वाला है।
ऐसे में यह बात साफ है कि इस बार भी इसका पूरा लाभ भाजपा को ही मिलने जा रहा है। क्योंकि भाजपा के पास इस बार राम मंदिर, मोदी और कास्ट का फैक्टर काम कर रहा है
मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट……………
मुजफ्फरपुर को इस बात का गौरव है कि यह धरती खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद चाकी की कर्मस्थली रही। यहां से बड़े समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस कई बार चुनाव जीते। मल्लाहों ने अपनी ताकत का एहसास यहां कराया और दो मल्लाह नेताओं के बीच तनातनी है। सीधी टक्कर है।
बीजेपी ने सीटिंग एमपी अजय निषाद का टिकट काट दिया और उनके निकटतम प्रतिद्वंदी रहे राजभूषण चौधरी को टिकट दे दिया। फिर क्या था अजय निषाद ने बीजेपी को करारा जवाब देते हुए कांग्रेस से टिकट हासिल कर लिया। इसलिए यहां राजनीति का कड़क कॉकटेल दिख रहा है।
अजय निषाद को लेकर बीजेपी में भी फीडबैक था कि वे क्षेत्र में नहीं गए। कैप्टन जयनारायण निषाद की विरासत उनकी ताकत भले है लेकिन जनता में कई वजहों से आक्रोश खूब दिख रहा है।प्रोफेसर आलोक प्रताप सिंह कहते हैं कि जनता उम्मीदें रखती हैं अपने सांसद से। मुजफ्फरपुर में विकास के कई मुद्दे हैं जिस पर विगत वर्षों में काम नहीं हो सका। एयर कनेक्टिविटी इस शहर को नहीं मिल पाया। जो यह शहर डिजर्व करता था वह इसे नहीं मिला। इसलिए लोग चाहेंगे कि बदलाव हो। स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दे दोनों मिल जाते हैं लोकसभा चुनाव में इसलिए ऊंट किस करवट बैठेगा यह कहना मुश्किल है।
पुल नहीं तो वोट नहीं
अतरार से औराई के बीच खतरनाक चचरी पुल है और वहां के लोगों ने ऐलान कर दिया है कि इस बार यहां से बॉक्स खाली जाएगा। वोट नहीं देंगे। इसी तरह का गुस्सा बागमती पर ही मधुरपट्टी से भटगामा में है। यहां हुए नाव हादसे में दर्जन भर लोगों की मौत हो गई लेकिन पुल नहीं बना, नतीजा लोगों ने यहां भी नारा लगा दिया है कि पुल नहीं तो वोट नहीं।
यहां उद्योग हैं नहीं, बाढ़ का इलाका है, पलायन है। मल्लाहों की बड़ी आबादी काम करने बाहर जा चुकी है। वैश्य वोट बैंक की ताकत बड़ी है। इसलिए अतिपिछड़ी और पिछड़ी जातियां यहां जीत-हार तय करेगी। भूमिहारों का वोट तो बीजेपी में जाना तय ही है जैसे कि यादवों- मुसलमानों का वोट कांग्रेस के उम्मीदवार को जाना तय है।
एक्सपर्ट बोले- मुजफ्फरपुर में कोई लहर नहीं
हवा का रुख किधर है इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार विभेष त्रिवेदी कहते हैं कि इस बार कोई लहर नहीं है। मुजफ्फरपुर शहर में जो लोग है वे दो लड़ाई लड़ रहे हैं। मुजफ्फरपुर से सटा वैशाली लोकसभा है। यहां के लोग वैशाली में अपने रिश्तेदारों को एनडीए को सबक सिखाने के लिए कह रहे हैं, वही लोग मुजफ्फरपुर में मोदी जी को जिताने की अपील कर रहे हैं।
वैशाली में मुन्ना शुक्ला की मदद कर रहे हैं और एनडीए को सबक सिखाना चाहते हैं जबकि मुजफ्फरपुर में मोदी की तरफ है। मास पीपुल में दो तरह की धारा है। एक धारा एनडीए की है दूसरी महागठबंधन की धारा।
महागठबंधन में यादव, मुस्लिम और आश्चर्य रुप से वे मल्लाह हैं जो अजय निषाद से नाराज थे। दूसरी तरफ एनडीए में ब्राह्मण, भूमिहार हैं। अतिपिछड़ी जाति और वैश्यों में विभाजन है, पिछली बार की तरफ एकतरफा नहीं है।
सीतामढ़ी लोकसभा सीट………..
2019 के लोकसभा चुनाव में सीतामढ़ी के लोगों ने 5 लाख 67 हजार 745 वोट देकर जदयू के उम्मीदवार सुनील कुमार पिंटू को सांसद बनाया था। पूरे 5 साल वो सांसद रहे। लेकिन, सीतामढ़ी के लोगों की शिकायत है कि क्षेत्र के विकास के लिए उनकी तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
मां सीता की जन्मस्थली पुनौरा धाम के विकास के लिए भी उन्होंने कोई पहल नहीं की। रीगा की बंद चीनी मिल को चालू करवाने के लिए भी सत्ताधारी दल में होते हुए राज्य सरकार से बात नहीं की। इस वजह से सीतामढ़ी के लोग सुनील कुमार पिंटू से बेहद नाराज हैं।
अगर, जदयू ने इन्हें दूसरी बार टिकट दिया होता तो शायद उन्हें हार का सामना करना पड़ता। संभावना है कि इस बात की आशंका जदयू को पहले से थी। इसलिए 2024 के इस लोकसभा चुनाव में बिहार विधान परिषद के सभापति देवेश चंद्र ठाकुर को जदयू ने टिकट देकर अपना उम्मीदवार बनाया।
इनका मुकाबला 2009 में जदयू के ही टिकट पर चुनाव लड़कर सांसद बने डॉ. अर्जुन राय से है, जो इस चुनाव में राजद के उम्मीदवार हैं। इन दोनों के बीच बेहद कड़ी टक्कर है। इसकी वजह हैं, वैश्य वोटर्स। जी हां, सीतामढ़ी में वैश्य वोटर्स की संख्या 5 लाख 90 हजार के करीब हैं।
वैश्य NDA से नाराज चल रहे हैं। क्योंकि, NDA ने सीतामढ़ी में ब्राह्मण तो पड़ोसी लोकसभा क्षेत्र शिवहर में राजपूत जाति से आने वाली लवली आनंद को टिकट देकर अपना उम्मीदवार बनाया है। जबकि, राजद ने रितु जायसवाल को शिवहर से अपना उम्मीदवार बनाया।
साइलेंट हैं सीतामढ़ी के शहरी वोटर्स
वैश्य NDA के कोर वोटर माने जाते हैं। पर महागठबंधन सीतामढ़ी में सेंधमारी कर चुकी है। इसका फायदा भी उन्हें मिलता दिख रहा है। वैश्य समेत शहरी इलाके के दूसरी जाति से भी आने वाले वोटर्स पूरी तरह से साइलेंट हो चुके हैं। ऐसे में परेशानी जदयू समेत पूरे NDA के लिए बढ़ गई है।
यही वजह है कि 16 मई को एक प्लान के तहत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जनसभा शहर के बीच स्थित गोयनका कॉलेज ग्राउंड में हुई थी। यहां उन्होंने खुले मंच से पिछड़ा और अति पिछड़ा कार्ड खेला था। बावजूद इसके यहां मुकाबला सख्त और दिलचस्प है।
कौन-किस पर भारी पड़ रहा है? इस सवाल का जवाब एक्सपर्ट भी एक जैसा नहीं दे पा रहे हैं। हवा का रुख किस ओर है? यह जानने के लिए हमने दो एक्सपर्ट से बात की।
मगर, दोनों की राय एक-दूसरे से अलग रही। वैसे ग्राउंड रिपोर्ट के तहत अलग-अलग इलाके के लोगों से हुई बातचीत में हवा का रुख महागठबंधन के उम्मीदवार की ओर है।
ब्राह्मण पर पिछड़ा-अति पिछड़ा हावी
सुबोध कुमार सीतामढ़ी के सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिक्ल एक्सपर्ट हैं। इनके अनुसार NDA के वोटर्स साइलेंट हैं। शहरी इलाके में इनके वोटर्स का बेस है। जो इस बार के चुनाव में बहुत एग्रेसिव नहीं हैं। जबकि, ग्रामीण इलाकों में महागठबंधन की पकड़ है। वहां के वोटर्स एग्रेसिव भी बहुत अधिक हैं।
स्थानीय मुद्दा और सीतामढ़ी के विकास की कोशिश पर दोनों उम्मीदवारों ने जोड़ दिया है। पर बात अब जातिवाद पर आ गई। साथ ही लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष और विपक्ष के खेमे में बंट गए हैं। यहां राजनीति अगड़ा और पिछड़ा की हो रही है।
इनकी नजर में महागठबंधन के उम्मीदवार आगे
एसएलके कॉलेज के रिटायर्ड प्रिंसिपल प्रोफेसर डॉ. आनंद किशोर की नजर में हवा का रुख महागठबंधन की तरफ से राजद के उम्मीदवार डॉ. अर्जुन राय की ओर है। इनका कहना है कि जदयू के देवेश चंद्र ठाकुर और डॉ. अर्जुन राय के बीच कड़ी टक्कर है। इन दोनों के बीच में कोई तीसरा नहीं है।
रिटायर्ड प्रिंसिपल कहते हैं कि किसी भी क्षेत्र में जब कोई उम्मीदवार होता है तो उसका बेस होता है। आज कल तो विकास के मुद्दे पर चुनाव नहीं लड़ा जा रहा है। सब कुछ जाति के आधार पर हो रहा है।
इस कारण राजद के उम्मीदवार का मेन बेस मुस्लिम-यादव (MY) समीकरण है। इस इलाके में मुसलमान और यादव, दोनों ही बहुसंख्यक हैं। वहीं, इस इलाके के भूमिहार पूरी तरह से उदासीन हैं। इनका वोट दोनों ही पक्ष में बंटने की संभावना है।
जदयू के उम्मीदवार को लोग पहचानते तक नहीं
सुनील कुशवाहा राजद के पूर्व विधायक हैं और सीतामढ़ी के जिलाध्यक्ष भी हैं। इनका दावा है कि डॉ. अर्जुन राय बड़े स्तर पर इस चुनाव को जीतने जा रहे हैं। क्योंकि, वो पूर्व में सीतामढ़ी के सांसद रह चुके हैं। लंबे समय से राजनीति कर रहे हैं और जनता की सेवा में लगे हैं।
वे बताते हैं कि सांसद रहते हुए सीतामढ़ी के विकास के लिए उन्होंने कई काम किए। NH-77, NH-104, C-227 रोड भी हमारे उम्मीदवार ने ही सांसद रहते वक्त बनवाया है। सीतामढ़ी से मुजफ्फरपुर रेल लाइन को उन्होंने ही चालू करवाया था।
आज तक जो रेलवे ओवर ब्रिज नहीं बना है, जो अभिशाप बना हुआ है। उसे स्वीकृत और फिर शिलान्यास भी उन्होंने ही करवाया था। लेकिन, बाद में आए जनप्रतिनिधियों के निष्क्रियता के कारण वो अभी तक नहीं बन पाया।
सबसे अधिक वोटों से जीतेंगे देवेश
जदयू के जिलाध्यक्ष सत्येंद्र सिंह कुशवाहा का अपना अलग दावा है। इनका मानना है कि देश में नरेंद्र मोदी और बिहार में नीतीश कुमार की लहर है। वहीं, सीतामढ़ी में उनके दल के उम्मीदवार देवेश चंद्र ठाकुर की लहर चल रही है। इस चुनाव में वही जीत दर्ज करेंगे, वो भी भारी वोटों से। हवा का रुख पूरी तरह से नरेंद्र मोदी और उनके उम्मीदवार के पक्ष में है।
इनके अनुसार देवेश चंद्र ठाकुर जाति और दल से ऊपर हैं। लंबे वक्त से वो जनसेवा के भाव से राजनीति करते हुए आ रहे हैं। यही कारण है कि क्षेत्र में जहां भी उनके पक्ष में कार्यक्रम हो रहा है, वहां लोगों की भीड़ बड़े स्तर पर उमड़ रही है।
पिछले चुनाव में जीत-हार का अंतर
2019 के चुनाव में जदयू के उम्मीदवार सुनील कुमार पिंटू थे। जबकि, राजद की तरफ से डॉ. अर्जुन राय को ही उम्मीदवार बनाया गया था। इन दोनों के बीच पिछले चुनाव में कड़ी टक्कर की उम्मीद थी। मगर, जब वोटों की गिनती के बाद रिजल्ट आया तो वो चौंकाने वाले थे। क्योंकि दोनों के बीच जीत-हार का अंतर बहुत बड़ा था।
सुनील कुमार पिंटू को 5 लाख 67 हजार 745 वोट मिले थे। वोट प्रतिशत 50.65 रहा था। वहीं डॉ. अर्जुन राय को 3 लाख 27 हजार 206 वोट मिले थे। जीत-हार के बीच 2 लाख 40 हजार 539 वोटों का अंतर था।
सारण लोकसभा…………..
सारण लोकसभा में 6 विधानसभा हैं। सोनपुर, परसा, अमनौर, गरखा, छपरा और मढ़ौरा। 2024 के लोकसभा चुनाव में यहां हवा का रुख क्या है, इसे समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि इन विधानसभा इलाकों का राजनीतिक समीकरण कैसा है।
सारण लोकसभा के सभी 6 विधानसभा इलाके यादव और राजपूत बहुल हैं। इनमें 4 पर राजद का कब्जा है। छपरा और अमनौर को छोड़कर सोनपुर, परसा, गरखा और मढ़ौरा में 2015 और 2020 विधानसभा चुनावों में राजद के विधायक जीते। लेकिन फिर भी 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में राजीव प्रताप रूडी को बढ़त मिली और वो सांसद बने।
2019 के लोकसभा चुनाव में राजीव प्रताप रूडी इन सभी 6 विधानसभा इलाकों में राजद कैंडिडेट चंद्रिका राय से आगे रहे थे। सभी विधानसभा में उन्हें 10 से 20 हजार वोटों की बढ़त मिली थी। लेकिन छपरा और अमनौर में निर्णायक बढ़त मिली और आखिर में करीब 1.40 लाख वोटों के मार्जिन से उन्होंने चंद्रिका राय को हराया। ऐसा तब हुआ, जब 2019 में मोदी लहर मानी जा रही थी।
2014 लोकसभा चुनाव की बात करें तो देश भर में बदलाव की लहर में थी। सारण लोकसभा में राजीव प्रताप रूडी करीब 41 हजार वोटों से जीते थे। उन्होंने राजद सुप्रीमो लालू यादव की पत्नी और पूर्व सीएम राबड़ी देवी को हराया था।
राबड़ी देवी 3 विधानसभा, सोनपुर, परसा और गरखा में रूडी से आगे रही थीं। तब भी छपरा, अमनौर के अलावा मढ़ौरा में रूडी को निर्णायक बढ़त मिली थी। यहां बता दें कि रूडी अमनौर के ही रहनेवाले हैं।
अब वो 3 बातें जो रूडी को परेशान कर सकती हैं –
कई स्थानीय वोटरों की शिकायत है कि रूडी क्षेत्र में दिखते नहीं हैं। उनसे संपर्क करना मुश्किल है। यह जरूर है कि वो सड़क का प्रोजेक्ट पास करा देंगे, बनवा देंगे, लेकिन उद्घाटन में नहीं दिखेंगे।
एंटी इनकंबेंसी की बात सामने आती है। रूडी का टिकट कटने की चर्चा भी हो चुकी है। मढ़ौरा समेत लोकसभा क्षेत्र के एक बड़े वोटर वर्ग में यह चर्चा तो है कि रूडी 2 टर्म से लगातार सांसद हैं, लेकिन पर्याप्त रोजगार जनरेट नहीं कर सके हैं।
एक बड़ी और महत्वपूर्ण बात यह भी सामने आ रही है कि पिछड़ा-अति पिछड़ा वोटर्स में टूट हो सकती है। अभी तक इसे नीतीश कुमार का वोटबैंक माना जाता था। लेकिन इस बार लालू ने 5 पिछड़ा-अति पिछड़ा कैंडिडेट को टिकट दिया है। इसका प्रभाव हर लोकसभा में पड़ेगा। 3 से 5% वोटर्स टूटने की आशंका है। यह रूडी के लिए बड़ी परेशानी वाली बात हो सकती है।
अब जानिए…रोहिणी की मुश्किलें क्या हैं…
लालू की बेटी के विरोध में सबसे बड़ी बात यह है कि उन्हें बाहरी के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। रूडी खुद भी अपनी जनसभाओं में यह बात बोल रहे हैं। रोहिणी के चुनावी हलफनामे में नागरिकता का जिक्र न होने का मामला कोर्ट तक ले गए हैं।
लालू की बेटी होना रोहिणी आचार्य की सबसे बड़ी पहचान है और यही उनके लिए सबसे बड़ा नुकसान है। विरोधी खेमा इस बात को जोरशोर से उठा रहा है कि लालू परिवारवाद को बढ़ावा देते हुए अब एक और बेटी को राजनीति में लाना चाह रहे हैं। साथ में जंगलराज का उदाहरण है ही।
एक बात जो बहुत उभर कर सामने नहीं आ रही, लेकिन अंदर-अंदर लालू परिवार की परेशानी बढ़ा रही है, वो है परसा विधानसभा के वोटर्स की नाराजगी। परसा लालू के समधी और तेजप्रताप यादव के ससुर चंद्रिका राय का क्षेत्र है। बात जब होती है सारण की बेटी की, तो लोग रोहिणी से पहले ऐश्वर्या का नाम ले रहे हैं। तेजप्रताप-ऐश्वर्या विवाद के बाद स्थानीय यादव वोटर्स भी लालू परिवार से नाराज बताए जा रहे हैं। चंद्रिका राय तो रूडी के साथ हैं ही।
एक्सपर्ट बोले- चुनाव पास आते-आते मुद्दा मोदी हो गया
सीनियर जर्नलिस्ट संजय कुमार सिंह कहते हैं कि जब सारण में टिकट की घोषणा हुई, तब हवा का रुख कुछ और था। अब कुछ और है। टिकट के ऐलान के वक्त तक स्थानीय मुद्दे हावी थे, लेकिन चुनाव नजदीक आते-आते मुद्दा मोदी हो गए।
राजद विधायकों और परसा पर लालू की नजर
संजय सिंह कहते हैं कि विधानसभा चुनावों में यहां राजद को लीड मिलती तो है लेकिन लोकसभा चुनावों में नहीं मिलती। वजह कि 2-3 राजद विधायक हैं, जो लोकसभा चुनावों में खुलकर सहयोग नहीं करते। इस बार राजद प्रमुख लालू प्रसाद की नजर ऐसे विधायकों पर भी है। साथ ही वो परसा के लोगों से भी संपर्क में हैं।
वहीं मनोकामना सिंह कहते हैं कि सारण में हार-जीत का अंतर बहुत कम रहता है। इसबार भी वही स्थिति है। यहां जाति और राष्ट्रवाद ही मुख्य मुद्दा दिख रहा है। दोनों प्रमुख जातियों के वोटर्स अपने-अपने प्रत्याशियों के साथ हैं।