नरेंद्र दोभालकर हत्याकांड में 11 साल बाद कोर्ट का फैसला आ गया. महाराष्ट्र में पुणे की विशेष अदालत ने आज यानी शुक्रवार को अंधविश्वास के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले कार्यकर्ता डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के मामले में शुक्रवार को फैसला सुनाया. कोर्ट ने दो दोषियों सचिन अंदुरे और शरद कलास्कर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जबकि तीन लोगों (संजीव, विक्रम और वीरेंद्र सिंह तावड़े) को बरी कर दिया. पुणे के ओंकारेश्वर ब्रिज पर सुबह की सैर पर निकले दाभोलकर की 20 अगस्त 2013 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस मामले में पांच लोगों को आरोपी बनाया गया है.
अभियोजन पक्ष ने अपनी अंतिम दलीलों में कहा था कि आरोपी अंधविश्वास के खिलाफ दाभोलकर के अभियान के विरोधी थे. शुरुआत में इस मामले की जांच पुणे पुलिस कर रही थी, लेकिन बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के बाद 2014 में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने मामले को अपने हाथ में ले लिया और जून 2016 में हिंदू दक्षिणपंथी संगठन सनातन संस्था से जुड़े डॉ. वीरेंद्र सिंह तावड़े को गिरफ्तार कर लिया. अभियोजन पक्ष के अनुसार, तावड़े हत्या के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक था.
उसने दावा किया कि सनातन संस्था दाभोलकर की संस्था महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति द्वारा किए गए कार्यों का विरोध करती थी. इसी संस्थान से तावड़े और कुछ अन्य आरोपी जुड़े हुए थे. सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में शुरुआत में भगोड़े सारंग अकोलकर और विनय पवार को शूटर बताया था लेकिन बाद में सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को गिरफ्तार किया और एक पूरक आरोपपत्र में दावा किया कि उन्होंने दाभोलकर को गोली मारी थी. इसके बाद, केंद्रीय एजेंसी ने अधिवक्ता संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को कथित सह-साजिशकर्ता के तौर पर गिरफ्तार किया.
अंधविश्वास के खिलाफ दाभोलकर का अभियान
घटना को अंजाम देने के बाद बाइक सवार हमलावर मौके से फरार हो गए थे। दाभोलकर की हत्या के पीछे की मुख्य वजह महाराष्ट्र अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति और सनातन संस्था के बीच के टकराव को माना जाता है। इस मामले में पांच लोगों को आरोपी बनाया गया है। विशेष लोक अभियोजक प्रकाश सूर्यवंशी ने बृहस्पतिवार को कहा था कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम से जुड़े मामलों की विशेष अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ए.ए.जाधव संभवत: शुक्रवार को फैसला सुनाएंगे। मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 20 गवाहों जबकि बचाव पक्ष ने दो गवाहों से सवाल-जवाब किए। अभियोजन पक्ष ने अपनी अंतिम दलीलों में कहा था कि आरोपी अंधविश्वास के खिलाफ दाभोलकर के अभियान के विरोधी थे।
सीबीआई को मिला था केस
बता दें कि शुरुआत में इस मामले की जांच पुणे पुलिस कर रही थी, लेकिन बंबई उच्च न्यायालय के आदेश के बाद 2014 में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने मामले को अपने हाथ में ले लिया और जून 2016 में हिंदू दक्षिणपंथी संगठन सनातन संस्था से जुड़े डॉ.वीरेंद्र सिंह तावड़े को गिरफ्तार कर लिया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, तावड़े हत्या के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक था। उसने दावा किया कि सनातन संस्था दाभोलकर की संस्था महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति द्वारा किए गए कार्यों का विरोध करती थी। इसी संस्थान से तावड़े और कुछ अन्य आरोपी जुड़े हुए थे। सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में शुरुआत में भगोड़े सारंग अकोलकर और विनय पवार को शूटर बताया था लेकिन बाद में सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को गिरफ्तार किया और एक पूरक आरोपपत्र में दावा किया कि उन्होंने दाभोलकर को गोली मारी थी।
पैटर्न एक जैसा, लेकिन हत्याएं कई सारी
इसके बाद, केंद्रीय एजेंसी ने अधिवक्ता संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को कथित सह-साजिशकर्ता के तौर पर गिरफ्तार किया। आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 120 बी (साजिश), 302 (हत्या), शस्त्र अधिनियम की संबंधित धाराओं और यूएपीए की धारा 16 (आतंकवादी कृत्य के लिए सजा) के तहत मामला दर्ज किया गया। तावड़े, अंदुरे और कालस्कर जेल में बंद हैं जबकि पुनालेकर और भावे जमानत पर बाहर हैं। दाभोलकर की हत्या के बाद अगले चार साल में तीन अन्य ऐसे ही कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुईं, जिनमें कम्युनिस्ट नेता गोविंद पानसरे (कोल्हापुर, फरवरी 2015), कन्नड़ विद्वान एवं लेखक एम.एम.कलबुर्गी (धारवाड़, अगस्त 2015) और पत्रकार गौरी लंकेश (बेंगलुरु, सितंबर 2017) की हत्याएं शामिल हैं। ऐसा अंदेशा है कि इन चारों मामलों के अपराधी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं।