लोकसभा सीट पर लड़ाई काफी दिलचस्प हो गई है। यहां लोकल बनाम बाहरी का मुद्दा है। महागठबंधन से सीपीआई (एम) के कैंडिडेट संजय कुमार लोकल हैं, जबकि एनडीए से लोजपा (रामविलास) के राजेश वर्मा भागलपुर से आते हैं। इस मुद्दे पर मोदी का चेहरा भारी पड़ रहा है। हर साल बाढ़ से तबाही वाले इस इलाके में भी लोग विकास का मुद्दा भूल कर मोदी की गारंटी पर बात कर रहे हैं।
जातीय समीकरण में तो दोनों दलों के कैंडिडेट का वोट बैंक लगभग बराबर है, लेकिन मोदी के चेहरे पर एनडीए कैंडिडेट बाहरी होने के बाद भी चुनावी रण में बाजी मारते हुए नजर आ रहे हैं। एक्सपर्ट इसे मोदी फैक्टर वाली लहर का असर मान रहे हैं।
बाहरी बनाम लोकल मुद्दा
खगड़िया के रजिस्ट्री मोड़ क्षेत्र में हम पहुंचे तो यहां रमेश चाय वाले की दुकान पर भीड़ लगी थी। सुबह के 8 बज रहे थे, यहां सूर्य की गर्मी पर राजनीतिक चर्चा वाली गर्मी भारी पड़ रही थी। यहां कई लोग सीपीआई (एम) कैंडिडेट संजय कुमार कुशवाहा के नाम की टी शर्ट पहन रखी थी। टी शर्ट पर कैंडिडेट की फोटो और चुनाव चिन्ह के साथ लिखा था- बाहरी भगाना है, खगड़िया को बचाना है। क्षेत्र की समस्या के सवाल पर मुरारी कुमार यादव बिजली-पानी का मुद्दा उठाते हैं। वह कहते हैं, 17 साल में क्या हुआ? अब बदलाव होना चाहिए।
मोहम्मद असगर बताते हैं, वह विकास के मुद्दे पर वोट करेंगे। खगड़िया विकास में काफी पीछे है, कोई काम नहीं हो रहा है। बाढ़ से बचाएं और रोजगार दें। ऐसा सांसद चाहिए, ताकि क्षेत्र का विकास हो सके। मजदूर का काम करने वाले अशोक महंगाई से तंग हैं। वह महागठबंधन के कैंडिडेट के नाम की टी शर्ट पहनने के सवाल पर कहते हैं, वह वोट भी वहीं करेंगे।
एक्सपर्ट बोले- मोदी के चेहरे पर होगी वोटिंग
जर्नलिस्ट गौतम बताते हैं, खगड़िया 7 नदियों से घिरा है। हर साल बाढ़ से ढाई लाख से अधिक की आबादी तबाह होती है। बाढ़ से पलायन की समस्या है, बाढ़ को रोकने में सरकार फेल है। यह क्षेत्र कृषि प्रधान है, लेकिन इस दिशा में भी कोई काम नहीं हो पाया है। गन्ने और केला की खेती बड़े पैमाने पर होती है, लेकिन किसान को उचित दाम नहीं मिल पाता है। यहां 10 साल में मेगा फूड पार्क तक नहीं बन पाया है। दुर्भाग्य है कि इन सब मुद्दों को भूलकर लोग चेहरे पर वोटिंग की बात कर रहे हैं।
एससी-एसटी और पासवान वोटर्स की संख्या भी लगभग ढाई लाख है। ऐसे में इस एंगल से एनडीए के कैंडिडेट्स का पलड़ा भारी पड़ रहा है। भाजपा के कोर वोटर्स यानि सवर्ण मतदाता की संख्या भी डेढ़ लाख से अधिक है। इसके अलावा व्यापारियों की भी संख्या अधिक हैं। व्यापारी, मारवाड़ी की संख्या भी निर्णायक वाली स्थिति में होती है। इसे भाजपा का बेस वोटर्स माना जाता है।
गौतम के हिसाब से तीसरा जो बड़ा फैक्टर है, वह बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी से जुड़ा है। सम्राट चौधरी खगड़िया के परबत्ता से पहली बार विधायक बने। क्षेत्र में उनका प्रभाव भी अधिक है, इससे एनडीए कैंडिडेट राजेश वर्मा को सीधा लाभ मिलेगा। चुनाव नजदीक है, लेकिन वोटर्स खामोश हैं। वोटर्स की खामोशी एनडीए के पक्ष में दिख रही है।
जातीय समीकरण साधने में इंडी गठबंधन फेल
इस बार चुनाव में इंडी गठबंधन वाले जातीय समीकरण साधने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। यहां यादव वोटर्स की संख्या सबसे अधिक साढ़े तीन लाख हैं, जबकि मुस्लिम वोटर्स की संख्या दूसरे नंबर पर सबसे अधिक डेढ़ लाख है, निषाद वोटर्स भी डेढ़ लाख हैं। एक्सपर्ट मानते हैं कि महागठबंधन को पूरी तरह से जातीय समीकरण साधने के लिए कैंडिडेट यादव या मुस्लिम को उतारना चाहिए था।
लेकिन, इस बार महागठबंधन ने कुशवाहा जाति के कैंडिडेट को मैदान में उतारा है। यादव बाहुल्य क्षेत्र में यादव कैंडिडेट नहीं होने से यादव वर्ग में अंदर ही अंदर नाराजगी है। इसके अलावा, पप्पू यादव का इस क्षेत्र में काफी प्रभाव है। ऐसे वोटर्स जो पप्पू यादव को पसंद करते हैं, वह खुलकर एनडीए के पक्ष में वोट कर सकते हैं।